शेयर मार्केट में एक सफल निवेश करने के लिए किसी कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental Analysis) करना बेहद जरूरी है। इसके जरिये निवेशक या बाजार विश्लेषक मूलभूत विशेषताओं तथा वित्तीय स्थिति के आधार पर किसी कंपनी के स्टॉक की उचित कीमत का आँकलन कर सकते हैं।
फंडामेंटल एनालिसिस के अंतर्गत कई घटक शामिल हैं और इनमें कंपनी के वित्तीय विवरणों का विश्लेषण बहुत खास है। इसके इस्तेमाल से किसी कंपनी के आर्थिक स्वास्थ्य का अंदाजा लगाया जाता है।
कंपनी के इन्हीं वित्तीय विवरणों में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज उसकी बैलेंस शीट (Balance Sheet) भी होती है, जिसके बारे में हम इस लेख में विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं। लेख में आगे जानेंगे बैलेंस शीट क्या है, इसको कैसे पढ़ते हैं तथा किसी कंपनी की बैलेंस शीट से उसके बारे में क्या-क्या जानकारी मिलती है।
बैलेंस शीट क्या है?
किसी कंपनी के वित्तीय विवरणों में इनकम स्टेटमेंट, कैश फ़्लो स्टेटमेंट तथा बैलेंस शीट शामिल होते हैं। इनमें इनकम स्टेटमेंट एक निश्चित समय में कंपनी की कमाई और खर्च को बताता है जबकि कैश फ़्लो स्टेटमेंट बताता है कि कंपनी कितना कैश/नगदी कमा रही है और उसका प्रबंधन कैसे कर रही है।
कंपनी का तीसरा और बेहद खास वित्तीय विवरण इसकी बैलेंस शीट होती है। यह बताती है कि किसी कंपनी के पास एसेट कितने हैं और उसकी देनदारियाँ यानी लायबिलिटी कितनी हैं। इसके साथ ही बैलेंस शीट कंपनी के मालिकों अथवा शेयरधारकों की हिस्सेदारी (shareholders’ equity) के विषय में भी जानकारी देती है।
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किसी कंपनी की बैलेंस शीट को उसकी नेट वर्थ का विवरण भी कहा जाता है। यह अकाउंटिंग (Accounting) के मूलभूत समीकरण यानी एसेट = लायबिलिटी + इक्विटी पर आधारित है। जिसका मतलब है कि कंपनी की संपत्तियों का कुल मूल्य उसकी देनदारियों तथा मालिकों की इक्विटी के कुल मूल्य के बराबर होनी चाहिए।
कंपनी के एसेट्स
एसेट किसी कंपनी की ऐसी संपत्तियाँ होती हैं जो कंपनी के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण होती हैं। इसके अंतर्गत मूर्त एसेट (Tangible Asset) जैसे भूमि, भवन, मशीनरी, नकदी इत्यादि तथा अमूर्त एसेट (Intangible Asset) जैसे पेटेंट, ट्रेड सीक्रेट, ट्रेड मार्क, ब्रांड वैल्यू इत्यादि शामिल होते हैं।
कंपनी की देनदारियाँ
कंपनी की देनदारियाँ (Liabilities) उसके वित्तीय दायित्व होते हैं, आसान शब्दों में इसे कंपनी का कर्ज कहा जा सकता है, जिसको उसे भविष्य में चुकाना है। इसके अंतर्गत लघु एवं दीर्घकालिक दो तरह की देनदारियाँ होती हैं।
लघुकालिक (Short-term) देनदारियों के तहत कार्मिकों का वेतन, टैक्स भुगतान, विभिन्न प्रकार के खर्चे आदि शामिल होते हैं, जिनका भुगतान जल्द करना होता है। वहीं दीर्घकालिक (Long-term) के तहत वे देनदारियाँ आती हैं, जिन्हें भविष्य में कभी चुकाया जाना है जैसे बड़े ऋण, भुगतान योग्य बॉन्ड इत्यादि।
शेयरधारकों की इक्विटी
यह बैलेंस शीट का महत्वपूर्ण घटक है, जो कंपनी के शेयरधारकों की कुल हिस्सेदारी के बारे में बताता है। गौरतलब है कि यह बैलेंस शीट का कोई स्वतंत्र घटक नहीं है बल्कि यह कंपनी की देनदारियों का ही हिस्सा है। शेयरधारकों की इक्विटी के अंतर्गत मुख्यतः शेयर कैपिटल तथा कंपनी में पुनः निवेश किया गया प्रॉफ़िट शामिल होता है।
बैलेंस शीट कैसे पढ़ें?
किसी भी बैलेंस शीट को दो पक्षों में विभाजित किया जाता है। इसके एक हिस्से में कंपनी के समस्त एसेट्स की जानकारी होती है, जबकि दूसरी ओर कंपनी की देनदारियों और शेयरधारकों की इक्विटी का विवरण होता है। उदाहरण के तौर पर आप सनफ्लैग आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (SUNFLAG) की बैलेंस शीट को देख सकते हैं।
बैलेंस शीट में एसेट्स का विवरण
बैलेंस शीट में एसेट्स को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। इनमें करेंट एसेट्स और नॉन-करेंट एसेट्स शामिल हैं, इन दोनों को आप ऊपर सनफ्लैग आयरन की बैलेंस शीट में भी देख सकते हैं। करेंट ऐसेट्स में वे संपत्तियाँ आती हैं, जिन्हें बेहद कम समय सामान्यतः एक साल के भीतर नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है।
इसके उदाहरणों को देखें तो इनमें कंपनी के बैंक डिपॉजिट, ग्राहकों से आने वाला पैसा (Trade Receivables), इन्वेंटरी, शॉर्ट टर्म निवेश, कंपनी द्वारा दिए गए शॉर्ट टर्म लोन इत्यादि शामिल हैं। इन परिसंपत्तियों यानी एसेट्स का इस्तेमाल कंपनी अपने दैनिक कामकाज के लिए और कारोबार के बाकी खर्चों के लिए करती है।
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कंपनी के एसेट्स की दूसरी श्रेणी नॉन-करेंट एसेट्स की है, इन्हें लॉन्ग-टर्म एसेट्स या फिक्स्ड एसेट्स भी कहा जाता है। ये सामान्यतः ऐसी संपत्तियाँ होती हैं, जिन्हें एक साल से अधिक समय तक उपयोग में लाया जाता है और इन्हें करेंट एसेट्स की तरह शॉर्ट टर्म में नकदी में नहीं बदला जा सकता।
इसके अंतर्गत प्रॉपर्टी, प्लांट और उपकरण, अमूर्त संपत्तियाँ (ट्रेडमार्क, पेटेंट, कॉपीराइट तथा ब्रांड नाम इत्यादि), लंबी अवधि के निवेश, लंबी अवधि के लिए दिया गया लोन, लंबी अवधि के प्रीपेड खर्च इत्यादि शामिल हैं।
बैलेंस शीट में लायबिलिटी का विवरण
कंपनी के एसेट्स की भांति इसकी लायबिलिटी भी करेंट तथा नॉन-करेंट दो वर्गों में विभाजित होती है। करेंट या शॉर्ट-टर्म देनदारियाँ वे होती हैं, जिनका भुगतान तुरंत सामान्यतः एक वर्ष के भीतर करना होता है। इनके अंतर्गत कच्चे माल का भुगतान, शॉर्ट-टर्म लोन, कर्मचारियों का वेतन, बिलों का भुगतान, कर देनदारियाँ आदि शामिल हैं।
दूसरी ओर नॉन-करंट लायबिलिटीज, वे देनदारियाँ होती हैं जिनका भुगतान कंपनी को एक साल के बाद करना होता है। इसके अंतर्गत लंबी अवधि के लोन, लांग टर्म प्रोविजन्स (ग्रैच्यूटी, लीव एनकैशमेंट, प्रॉविडेंड फंड), भविष्य में टैक्स के भुगतान की संभावना (Deferred Tax Liabilities), भुगतान योग्य बॉन्ड आदि शामिल होते हैं।
बैलेंस शीट में इक्विटी
बैलेंस शीट में इक्विटी देनदारियों का ही भाग है। इसका कारण जानने के लिए आपको किसी बिजनेस को इसके मालिकों से स्वतंत्र मानना पड़ेगा। इस तरह शेयरधारकों की इक्विटी वह राशि है जो कंपनी द्वारा इसके मालिकों को देय है।
यदि कोई कंपनी अपने सभी एसेट्स बेच दे तथा सभी देनदारियों का भुगतान कर दे तो शेष शेयरधारकों की इक्विटी बचती है। इक्विटी के अंतर्गत शेयर कैपिटल यानी वह पैसा है जो निवेशकों ने कंपनी के शेयर खरीदने के लिए दिया है, कंपनी में पुनः निवेश किया गया प्रॉफ़िट तथा रिजर्व एवं सरप्लस शामिल होते हैं।
सार-संक्षेप
बैलेंस शीट किसी कंपनी का एक वित्तीय दस्तावेज है, जिसमें उसकी सभी परिसंपत्तियों तथा देनदारियों का विवरण होता है। किसी कंपनी के फंडामेंटल एनालिसिस के दौरान इसको समझना बेहद जरूरी है। बैलेंस शीट कंपनी की वित्तीय स्थिति को स्पष्ट रूप से दिखाती है जिससे यह पता चलता है कि कंपनी आर्थिक तौर पर कितनी स्थिर है।
इसके जरिये किसी कंपनी में निवेश करने के संबंध में निर्णय लिया जा सकता है। हालांकि किसी स्टॉक में इन्वेस्ट करने से पहले अन्य वित्तीय विवरणों जैसे लाभ और हानि का विवरण, कैश फ़्लो विवरण, कंपनी का बिजनेस मॉडल, प्रबंधन की गुणवत्ता आदि के विषय में जान लेना भी बहुत जरूरी होता है।