ग्राहकों के बैंकिंग अनुभव को बेहतर बनाने के लिए बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 को लोकसभा ने अपनी मंजूरी दे दी है। इस विधेयक में कुल 19 संशोधन प्रस्तावित हैं, जिनमें से एक के तहत अब खाताधारक अपने बैंक खातों से अधिकतम चार व्यक्तियों को नॉमिनी के तौर पर जोड़ पाएंगे।
नामांकित व्यक्तियों की संख्या बढ़ाने के पीछे सरकार की मंशा, बैंकों में बिना दावे के पड़ी धनराशि को कम करना है। आंकड़ों को देखें तो मार्च 2024 तक भारतीय बैंकों में बिना दावे के पड़ी धनराशि (Unclaimed Money) करीब ₹78,213 करोड़ रुपये थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार जमाकर्ताओं को नामांकन की प्रक्रिया क्रमिक रूप से (sequential Nomination) या एक साथ करने का विकल्प दिया जाएगा।
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हालांकि लॉकर सेवाओं के लिए केवल क्रमिक नामांकन की सुविधा ही उपलब्ध होगी। क्रमिक नामांकन का मतलब है कि लॉकर में रखे सामान के लिए पहला नॉमिनी उपलब्ध न होने की स्थिति में दूसरा नॉमिनी स्वतः प्रभावी हो जाएगा। इस बदलाव से लॉकर धारकों के कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए प्रक्रिया सरल और विवादमुक्त होगी।
अब तक बैंक खातों में केवल एक नॉमिनी जोड़ने की अनुमति थी, लेकिन नए प्रावधान के तहत ग्राहक अपने बैंक खातों में अधिकतम चार नॉमिनी जोड़ सकते हैं। यह सुविधा खाताधारकों को अधिक लचीलापन प्रदान करने और उनकी वित्तीय योजनाओं को अधिक संरक्षित बनाने के साथ बैंकों में पड़े अनक्लेम्ड अमाउंट को सही उत्तराधिकारियों तक पहुंचाने का काम करेगा।
बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक के प्रमुख बिंदु
नामांकित व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि: अब खाताधारक अपनी जमा राशि, सेफ कस्टडी में रखी वस्तुओं और लॉकर के लिए अधिकतम चार नामांकित व्यक्तियों को जोड़ सकते हैं।
शेयरधारिता सीमा में बदलाव: इस विधेयक में लाभकारी स्वामित्व के तहत शेयरधारिता की सीमा 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये की गई है।
रिपोर्टिंग तिथियों में लचीलापन: नया कानून बैंकों द्वारा आरबीआई को वैधानिक प्रस्तुतियों की तारीखों में संशोधन करने की अनुमति देगा। अब ये रिपोर्ट पंद्रह दिन, एक महीने और तिमाही के आखिरी में दी जा सकेगी, जबकि इससे पहले बैंकों को हर शुक्रवार को रिपोर्ट देनी होती थी।
सहकारी बैंकों में कार्यकाल का विस्तार: निदेशक मंडल में अध्यक्ष और पूर्णकालिक निदेशक को छोड़कर अन्य निदेशकों का कार्यकाल 8 साल से बढ़ाकर 10 साल किया गया है।
सहकारी बैंक के निदेशकों के लिए बदलाव: नए विधेयक के अंतर्गत केंद्रीय सहकारी बैंक का निदेशक अब राज्य सहकारी बैंक के बोर्ड में भी अपनी सेवाएं दे सकेगा।
ऑडिटर्स की फीस तय करने का अधिकार: विधेयक बैंकों को वैधानिक लेखा परीक्षकों (ऑडिटर्स) के पारिश्रमिक तय करने में अधिक स्वायत्तता प्रदान करता है, जिससे बैंक की ऑडिट क्वालिटी में सुधार होगा।
बिना दावे वाली राशि का निपटारा: यह संशोधन बिना दावे वाले डिविडेंड, शेयर और बांड के ब्याज या रिडेम्पशन आय को निवेशक एजूकेशन और संरक्षण कोष में स्थानांतरित करने की सुविधा प्रदान करेगा। ताकि लोगों को अपने ट्रांसफर और रिफंड का दावा करने की सुविधा मिल सकेगी।