शेयर मार्केट में ऑफर फॉर सेल (OFS) का क्या मतलब होता है?

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अगर आपने कभी किसी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) के लिए आवेदन किया हो, तो कुल इश्यू होने वाले शेयरों की संख्या को फ्रेश इश्यू तथा ऑफर फॉर सेल (OFS) दो अलग-अलग श्रेणियों के तहत देखा होगा।

उदाहरण के लिए 15 अक्टूबर 2024 से खुलने वाली अब तक का सबसे बड़ी पब्लिक ऑफरिंग हुंडई मोटर्स इंडिया लिमिटेड आईपीओ 100 फीसदी ऑफर फॉर सेल (OFS) है। आइए इस लेख के माध्यम से समझते हैं शेयर बाजार में ऑफर फॉर सेल क्या होता है और निवेशकों के लिए इसका क्या मतलब है?

ऑफर फॉर सेल (OFS) क्या है?

साधारण शब्दों में ऑफर फॉर सेल (OFS) शेयर मार्केट से जुड़ी एक प्रक्रिया है, जिसके तहत किसी कंपनी के प्रमोटर्स या शेयरहोल्डर्स अपने शेयर सार्वजनिक निवेशकों जैसे पब्लिक को बेच सकते हैं।

आप जानते हैं, जब किसी कंपनी को पैसों की जरूरत होती है, तो वह आईपीओ के जरिये निवेशकों से पैसे इकट्ठा करती है और बदले में उन्हें कंपनी में हिस्सेदार बनाती है। लेकिन किसी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग से जुटाई जाने वाली पूँजी हर बार कंपनी के पास नहीं जाती।

आईपीओ कंपनियों के लिए पूँजी जुटाने के साथ-साथ कंपनी के मौजूदा निवेशकों जैसे वेंचर कैपिटलिस्ट, एंजल इन्वेस्टर्स इत्यादि के लिए कंपनी से बाहर निकलने का एक तरीका भी होता है। जब भी आप किसी आईपीओ में कुल इश्यू होने वाले शेयरों की संख्या पर नजर डालेंगे तो आपको फ्रेश इश्यू तथा ऑफर फॉर सेल ये दो श्रेणियाँ दिखाई देंगी।

what is offer for sale in Hindi

यहाँ फ्रेश इश्यू (Fresh Issue) का मतलब होता है कि, कंपनी ने पूँजी जुटाने के लिए नए शेयर जारी किये हैं। इस स्थिति में शेयरों को बेचकर मिलने वाली राशि कंपनी के पास जाती है और वह उसे वर्किंग कैपिटल या अन्य खर्चों के लिए इस्तेमाल कर सकती है।

वहीं दूसरी ओर ऑफर फॉर सेल (OFS) श्रेणी के तहत आने वाले शेयर कंपनी के मौजूदा निवेशकों, प्रमोटर्स इत्यादि के होते हैं और इनकी बिक्री से आने वाला पैसा शेयरधारकों की जेब में जाता है। ऑफर फॉर सेल के जरिये कंपनी के ऐसे निवेशक अपने शेयर बेच पाते हैं, जिन्होंने कंपनी के शुरुआती सफर में उसमें निवेश किया था।

ऑफर फॉर सेल क्यों लाया जाता है?

ऊपर हमनें ऑफर फॉर सेल लाने का एक महत्वपूर्ण कारण जाना जो कि, कंपनी के पुराने निवेशकों का निवेश से बाहर निकलना है। इसके अलावा एक और कारण भी है, जिसके चलते कंपनियाँ ऑफर फॉर सेल लाती हैं।

दरअसल साल 2010 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एक नियम लागू किया, जिसके तहत सभी सूचीबद्ध कंपनियों के लिए अपनी न्यूनतम 25% हिस्सेदारी सार्वजनिक निवेशकों के पास रखनी अनिवार्य कर दी गई।

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इस नियम का पालन करने के लिए कई बार कंपनियों के प्रमोटर्स को अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ती है और इसके लिए वे ऑफर फॉर सेल (OFS) का इस्तेमाल करते हैं। गौरतलब है कि, यदि कोई कंपनी शेयर बाजार में लिस्टेड नहीं है तो उसे ऑफर फॉर सेल लाने के लिए आईपीओ की प्रक्रिया को फॉलो करना होता है।

इसके विपरीत यदि ऑफर फॉर सेल द्वितीयक बाजार का है यानी कंपनी पहले से शेयर बाजार में लिस्टेड है तथा अपनी कुछ हिस्सेदारी फिर से पब्लिक में बेचना चाहती है, तो उसे आईपीओ जैसी जटिल प्रक्रिया से नहीं गुजरना होता, बल्कि वह स्टॉक एक्सचेंज में ऑफर लेटर दाखिल कर ऐसा कर सकती है।

ऑफर फॉर सेल में निवेश कैसे करें?

ऑफर फॉर सेल (OFS) में भाग लेने के लिए निवेशकों के पास एक डीमैट खाता होना चाहिए, जिसे जेरोधा के साथ बिना किसी शुल्क के ओपन किया जा सकता है। यदि ऑफर फॉर सेल प्राथमिक बाजार में लाया जा रहा है, तो इसके लिए आवेदन करने की प्रक्रिया किसी आईपीओ में आवेदन करने के समान ही होती है।

लेकिन यदि ऑफर फॉर सेल द्वितीयक बाजार में लाया जा रहा हो, तो इसके लिए डीमैट खाते के माध्यम से आवेदन किया जा सकता है। आवेदन करने का विकल्प ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म के अनुसार अलग-अलग हो सकता है, जैसे जेरोधा में “कॉर्पोरेट एक्शन” वाले सेक्शन में जाकर आप एक्टिव OFS को देख सकते हैं और अपनी बोली लगा सकते हैं।

ऑफर फॉर सेल में निवेश कैसे करें?

ऑफर फॉर सेल की आवेदन प्रक्रिया

किसी ऑफर फॉर सेल में भाग लेने से पहले आपके लिए इसकी प्रक्रिया तथा प्रक्रिया से जुड़ी कुछ शब्दावलियों को समझ लेना बेहद जरूरी है।

OFS की प्रक्रिया सामान्यतः दो दिनों में पूरी की जाती है। पहले दिन यह नॉन-रिटेल श्रेणी के निवेशकों के लिए खुलता है जैसे हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल, संस्थागत निवेशक इत्यादि। वहीं दूसरे दिन इसे रिटेल श्रेणी के निवेशकों के लिए खोला जाता है, दो लाख रुपयों से कम की बोली लगाने वाले निवेशक इस श्रेणी के तहत आते हैं।

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ऑफर फॉर सेल में प्रमोटर्स प्रति शेयर कीमत का निर्धारण करते हैं, जिसे फ्लोर प्राइज कहा जाता है। पहले दिन नॉन-रिटेल श्रेणी के आवेदक इस कीमत पर या इससे ऊपर अपनी बोली लगाते हैं। जिस अंतिम कीमत पर नॉन-रिटेल श्रेणी को शेयर अलॉट किये जाते हैं उस प्राइज को रिटेल निवेशकों के लिए कट-ऑफ प्राइज निर्धारित किया जाता है और रिटेल निवेशक इस कीमत से नीचे बोली नहीं लगा सकते।

OFS के अलॉटमेंट का तरीका

OFS में अलॉटमेंट के दो तरीके हैं, पहला प्राइस प्रायोरिटी मेथड तथा दूसरा प्रो-रेटा या प्रोपोर्शनेट मेथड। कंपनी अलॉटमेंट में किस तरीके का इस्तेमाल करने वाली है, इसकी जानकारी वह अपने ऑफर लेटर में स्पष्ट करती है।

इस तरीके में बोली की कीमत को वरीयता दी जाती है। सबसे ऊँची बोली लगाने वाले निवेशक को शेयर सबसे पहले मिलते हैं और बाकी शेयर बोली के घटते क्रम में आवंटित किये जाते हैं, जब तक कि शेयर उपलब्ध हों।

प्राइस प्रायोरिटी मेथड के भीतर भी दो अलग-अलग तरीकों कट-ऑफ प्राइज एवं मल्टीपल प्राइज का इस्तेमाल होता है। कट-ऑफ प्राइज के तहत शेयर निर्धारित कट-ऑफ प्राइज पर अलॉट किये जाते हैं। जबकि मल्टीपल प्राइज की स्थिति में जिस कीमत पर निवेशक बोली लगाते हैं, उन्हें शेयर उसी कीमत पर अलॉट होते हैं।

प्रोपोर्शनेट मेथड में यदि निवेशकों द्वारा दी गई बोलियां कुल उपलब्ध शेयरों से अधिक होती हैं, तो सभी योग्य निवेशकों को उनके द्वारा मांगे गए शेयरों के अनुसार अनुपात में शेयर अलॉट किये जाते हैं।

उदाहरण के लिए यदि कुल शेयरों की संख्या 10,000 है तथा आवेदन 100,000 शेयरों के लिए प्राप्त हुए हैं, जो करीब 10 गुना अधिक हैं, तो प्रत्येक निवेशक को उसकी कुल मांग के 1/10 शेयर अलॉट किये जाएंगे।

सार-संक्षेप

ऑफर फॉर सेल (Offer For Sale) किसी कंपनी के प्रमोटर्स या शेयरधारकों द्वारा अपने शेयर पब्लिक में बेचने की एक प्रक्रिया है। यह किसी आईपीओ के जरिये प्राइमरी मार्केट में भी लाया जा सकता है, इसके अलावा यह सेकेंडरी मार्केट में भी लाया जा सकता है, जबकि कंपनी पहले से शेयर बाजार में लिस्ट हो।

बाजार नियामक सेबी द्वारा ऑफर फॉर सेल (OFS) लाने के लिए कुछ नियम निर्धारित किये हैं, जैसे ऑफर फॉर सेल लाने वाली कंपनी का मार्केट कैपिटल 1000 करोड़ से कम नहीं होना चाहिए। इसके अलावा नॉन-प्रमोटर्स की स्थिति में OFS लाने के लिए शेयरधारक के पास कम से कम कंपनी की 10 फीसदी हिस्सेदारी होनी अनिवार्य है।