भुगतान संतुलन या ‘बैलेंस ऑफ पेमेंट्स’ एक वित्तीय लेखा-जोखा है, जो एक विशिष्ट अवधि के भीतर हुए किसी देश के सभी अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक लेन-देन की जानकारी देता है। इसकी गणना आमतौर पर प्रत्येक वित्त वर्ष में की जाती है।
भुगतान संतुलन या बैलेंस ऑफ पेमेंट्स क्या है?
भुगतान संतुलन एक वित्तीय लेखा-जोखा है, जो एक वित्त वर्ष के दौरान किसी देश का विश्व के साथ होने वाले प्रत्येक मौद्रिक लेन-देन जैसे व्यापार आदि की जानकारी देता है। इसमें प्रायः किसी देश के निवासियों (Resident) तथा गैर निवासियों (Non-Resident) के मध्य होने वाले मुद्रा के लेन-देन का रिकॉर्ड रखा जाता है।
भुगतान संतुलन की मदद से किसी देश के कुल आयात तथा निर्यात की जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त यह अंतर्राष्ट्रीय उधार को भी प्रदर्शित करता है, जिससे किसी देश की अन्य देशों पर आर्थिक निर्भरता का पता चलता है। सामान्य शब्दों में कहें तो भुगतान संतुलन (Balance of Payments) एक ऐसा दस्तावेज है, जो एक वित्तीय वर्ष के दौरान किसी देश में आने वाली कुल मुद्रा तथा देश से बाहर जाने वाली कुल मुद्रा की जानकारी देता है।
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इस दस्तावेज को प्रत्येक देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा तैयार किया जाता है। भुगतान संतुलन के प्रत्येक भाग तथा उसके घटकों के लिए मुख्यतः दो कॉलम बनाए जाते हैं। जिनमें एक देश में आने वाली मुद्रा या क्रेडिट को दर्शाता है, जबकि दूसरा देश से बाहर जानें वाली मुद्रा या डेबिट को दर्शाता है।
चूँकि बैलेंस ऑफ पेमेंट्स, संतुलन की बात करता है अतः देश में आने वाले पैसे तथा देश से बाहर जाने वाले पैसे में अंतर होने की स्थिति में इसे संतुलित करने का काम देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है।
भुगतान संतुलन में ‘डेफिसिट’ या ‘सरप्लस’ क्या होता है?
सैद्धांतिक रूप से बैलेंस ऑफ पेमेंट (BOP) शून्य होना चाहिए अर्थात क्रेडिट तथा डेबिट दोनों बराबर होने चाहिए। लेकिन व्यवहारिक रूप से किसी भी देश में आने वाली कुल मुद्रा देश से बाहर जाने वाली कुल मुद्रा के समान नहीं होती है, अतः इन दोनों के बीच के अंतर को केन्द्रीय बैंक द्वारा संतुलित किया जाता है।
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जब देश में आने वाली मुद्रा देश से बाहर जाने वाली मुद्रा से कम हो तो इस स्थिति को डेफिसिट कहा जाता है और तब देश का केन्द्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार से दोनों के बीच के अंतर की भरपाई करता है। यह स्थिति निर्यात की तुलना में किसी देश के अधिक आयात को दिखाती है और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं समझी जाती।
वहीं दूसरी ओर यदि देश में आने वाली मुद्रा देश से बाहर जाने वाली मुद्रा से अधिक हो तो इसे सरप्लस कहा जाता है और इस स्थिति में केन्द्रीय बैंक अतिरिक्त मुद्रा को अपने विदेशी मुद्रा भंडार में जमा कर लेता है। इस स्थिति से किसी देश के आयात की तुलना में अधिक निर्यात का पता चलता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी होती है।
बैलेंस ऑफ पेमेंट का वर्गीकरण
भुगतान संतुलन (Balance of Payments) के मुख्यतः दो भाग होते हैं।
- चालू खाता (Current Account)
- पूँजी एवं वित्तीय खाता (Capital & Financial Account)
चालू खाता
भुगतान संतुलन में चालू खाते को फिर से दो घटकों, दृश्य एवं अदृश्य उत्पादों में विभाजित किया जाता है, जैसा कि नीचे चित्र में दर्शाया गया है। दृश्य उत्पाद अर्थात ऐसे उत्पाद, जिन्हें देखा या महसूस किया जा सकता है, इसमें किन्हीं वस्तुओं के आयात या निर्यात का रिकॉर्ड रखा जाता है।
उदाहरण की बात करें तो किसी देश से आयात की गई गाड़ी, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, कपड़े इत्यादि इस श्रेणी में आते हैं। वहीं अदृश्य उत्पादों से आशय ऐसे उत्पादों से है, जिन्हें देखा नहीं जा सकता, सेवाओं का आयात – निर्यात इस श्रेणी में शामिल होता है।
इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति द्वारा विदेश में नौकरी कर अपने परिवार को भारत में भेजी गई मुद्रा या भारत में कार्य कर रहे किसी विदेशी द्वारा अपने परिवार को विदेश में भेजी गई मुद्रा (रेमिटेंस), विदेशों से मिलनें वाले या विदेशों को भेजे जाने वाले उपहार या डोनेशन, भारतीयों द्वारा विदेश में किए गए किसी निवेश से लाभ, ब्याज आदि के रूप में आने वाली मुद्रा या विदेशियों द्वारा भारत में किए गए निवेश से उन्हें प्राप्त ब्याज, लाभ आदि के रूप में बाहर भेजी गई मुद्रा आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं।
पूंजी एवं वित्तीय खाता
पूँजी खाते से पूर्व किसी परिसंपत्ति या एसेट को समझना आवश्यक है। एसेट्स से आशय ऐसी संपत्तियों से है, जो आय का सृजन करती हों, उदाहरण के तौर पर किसी व्यक्ति द्वारा किराए में लगाया गया मकान उसकी परिसंपत्ति अथवा एसेट है, क्योंकि उससे किराए के रूप में आय का सृजन होता है।
इसी प्रकार देश के निवासियों तथा शेष विश्व के मध्य एक वित्तीय वर्ष में किये जाने वाले वे सभी आर्थिक लेन-देन, जिनके कारण एसेट्स के स्वामित्व में परिवर्तन होता है पूँजी खाते के अंतर्गत आते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी भारतीय निवासी द्वारा विदेश में खरीदा गया कोई एसेट जिससे उसे आय प्राप्त हो इस खाते में दर्शायी जाएगी।
गौरतलब है कि, निवेश की गई राशि पूँजी खाते के अंतर्गत दर्शायी जाती है, जबकि उस निवेश से मिलने वाले लाभ, ब्याज आदि को करेंट अकाउंट या चालू खाते में दर्शाया जाता है, जिसकी चर्चा हमनें ऊपर की है।
भुगतान संतुलन के इस खाते में रियल एस्टेट, एफडीआई, व्यावसायिक उद्यमों आदि निवेशों के माध्यम से दूसरे देशों से आने वाली या देश से बाहर जाने वाली धनराशि, सरकारी स्वामित्व वाली संपत्तियां जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास मौजूद SDR आदि को भी दर्ज किया जाता है।
बैलेंस ऑफ पेमेंट्स क्यों महत्वपूर्ण है?
बैलेंस ऑफ पेमेंट्स किसी भी देश के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक दस्तावेज है, इसके द्वारा किसी देश की अर्थव्यवस्था का आंकलन किया जा सकता है। आइये जानते हैं कैसे किसी देश का भुगतान संतुलन (BOP) उस देश के आर्थिक स्वास्थ्य की जानकारी देता है।
- किसी देश के बैलेंस ऑफ पेमेंट्स से उसकी वित्तीय और आर्थिक स्थिति का पता चलता है।
- बैलेंस ऑफ पेमेंट्स स्टेटमेंट का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है कि देश की मुद्रा का मूल्य बढ़ रहा है अथवा घट रहा है।
- बैलेंस ऑफ पेमेंट्स से सरकार को राजकोषीय और व्यापार नीतियों पर निर्णय लेने में मदद मिलती है।
- यह किसी देश का अन्य देशों के साथ आर्थिक व्यवहार को समझने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
बैलेंस ऑफ पेमेंट्स से क्या पता चलता है?
भुगतान संतुलन (Balance of Payments) के अंतर्गत मुख्य रूप से दो खाते करेंट अकाउंट तथा कैपिटल अकाउंट शामिल हैं और इन खातों की स्थिति (सरप्लस अथवा डेफिसिट) के आधार पर किसी देश के संबंध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
चालू खाते से निष्कर्ष
भुगतान संतुलन में चालू खाते के संबंध में निम्न तीन स्थितियां हो सकती हैं।
धनात्मक व्यापार शेष: जब देश का निर्यात आयात की तुलना में अधिक हो यह स्थिति देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी होती है
ऋणात्मक व्यापार शेष: ऐसी स्थिति जब देश का आयात निर्यात की तुलना में अधिक हो यह स्थिति अर्थव्यवस्था की कमजोर स्थिति को दर्शाता है, इसे व्यापार घाटा (Trade Deficit) भी कहा जाता है
व्यापार संतुलन: जब कुल आयात तथा निर्यात समान हो
पूँजी खाते से निष्कर्ष
किसी देश के भुगतान संतुलन में प्रदर्शित पूँजी खाते द्वारा निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
धनात्मक शेष: जब एक वित्तीय वर्ष के दौरान विदेशियों द्वारा भारत में परिसंपत्तियों का अर्जन भारतीयों द्वारा विदेशों में परिसंपत्तियों के अर्जन से अधिक होता है। इस स्थिति में देश में अधिक मुद्रा आती है अर्थात देश की देयता में वृद्धि होती है अतः धनात्मक शेष देश की अर्थव्यवस्था में नकारात्मक प्रभाव डालता है।
ऋणात्मक शेष: जब एक वित्तीय वर्ष के दौरान भारतीयों द्वारा विदेश में परिसंपत्तियों का अर्जन, विदेशियों द्वारा भारत में अर्जित की गई परिसंपत्तियों से अधिक हो तो इस स्थिति को ऋणात्मक शेष कहा जाता है। ऐसी स्थिति में देश से मुद्रा अधिक मात्रा में बाहर जाती है अतः देश के ऊपर देयता नहीं रहती इसके अतिरिक्त परिसंपत्तियों से देश में लाभांश के रूप में मुद्रा भी आती है। यह स्थिति अर्थव्यवस्था में सकारात्मक प्रभाव डालती है।
संतुलन: जब परिसंपत्तियों का अर्जन दोनों स्थितियों में समान रहे
सार-संक्षेप
भुगतान संतुलन (Balance of Payment) एक ऐसा आर्थिक विवरण है, जो किसी निश्चित अवधि के दौरान एक देश के निवासियों और शेष विश्व के बीच किए गए सभी मौद्रिक लेन-देन के रिकॉर्ड को दिखाता है।
इस विवरण में व्यक्तियों, कॉरपोरेट्स और सरकार द्वारा किए गए सभी लेन-देन शामिल होते हैं। किसी देश के लिए, भुगतान संतुलन उस देश में धन की अधिकता या कमी कमी को प्रदर्शित करता है साथ ही यह उस देश के निर्यात एवं आयात की स्थिति की जानकारी भी देता है।