तरलता या लिक्विडिटी क्या है?
तरलता या लिक्विडिटी (Liquidity) किसी एसेट की एक विशेषता है, जिससे यह पता चलता है कि वह एसेट उसके बाजार मूल्य के साथ कोई समझौता किये बिना कितनी आसानी से नकदी यानी कैश में बदला जा सकता है। दूसरे शब्दों में, लिक्विडिटी किसी परिसंपत्ति की उस क्षमता को दर्शाती है, जिसके द्वारा परिसंपत्ति को उसके वास्तविक मूल्य पर तुरंत खरीदा या बेचा जा सकता है।
जिस एसेट की लिक्विडिटी जितनी अधिक होगी उसे नकदी में बदलना भी उतना ही आसान होगा। नकदी (कैश) को लिक्विडिटी का मानक माना जाता है, क्योंकि इसे किसी भी दूसरे एसेट में बदलना बहुत आसान है।
इसके विपरीत कम लिक्विड एसेट्स को नकदी में बदलने में अधिक समय लग सकता है। उदाहरण की बात करें तो सोना, किसी मकान की तुलना में अधिक लिक्विड है क्योंकि इसे बहुत कम समय में नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है।
तरलता (Liquidity) को कैसे मापा जा सकता है?
आय के नए स्रोत बनाने अथवा भविष्य में मूल्य वृद्धि का फायदा लेने के लिए हम तरह-तरह के एसेट्स में निवेश करते हैं जैसे गोल्ड, स्टॉक्स, बॉन्ड, रियल एस्टेट इत्यादि, लेकिन इन सभी इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य किसी न किसी तरीके से नकदी प्राप्त करना ही होता है।
ऐसे में वह माप बेहद जरूरी हो जाती है जो हमें यह बता सके कि, किस एसेट की नकदी तक कितनी आसान पहुंच है और इसे देखने के लिए ही किसी ऐसेट की लिक्विडिटी या तरलता को देखा जाता है। लिक्विडिटी को मापने के मुख्यतः दो तरीके हैं, इनमें पहला मार्केट लिक्विडिटी तथा दूसरा अकाउंटिंग लिक्विडिटी है, आइए इन दोनों को विस्तार से समझते हैं।
मार्केट लिक्विडिटी
मार्केट लिक्विडिटी या बाजार तरलता किसी बाजार जैसे कि किसी देश के शेयर बाजार या किसी शहर के रियल एस्टेट बाजार में पारदर्शी कीमतों पर एसेट्स के लेन-देन (खरीद-फरोख्त) की सहजता को दिखाती है। बाजार तरलता को मापने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे बिड-आस्क स्प्रेड, ट्रेडिंग वॉल्यूम, मार्केट डेप्थ, डेस-ऑन-मार्केट इत्यादि।
बिड-आस्क स्प्रेड: यह बाजार में किसी संपत्ति की खरीद और बिक्री की कीमत के बीच का अंतर है। बाजार में किसी एसेट के संबंध में खरीदार द्वारा ऑफर की जाने वाली कीमत तथा विक्रेता द्वारा स्वीकार की जाने वाली कीमत एक दूसरे के जितना अधिक करीब होंगी उस बाजार को उतना अधिक तरल (Liquid) समझा जाता है।
यह भी पढ़ें : नाबार्ड (NABARD) क्या है और यह क्या काम करता है?
ट्रेडिंग वॉल्यूम: यह किसी समयावधि के दौरान ट्रेड करी गई संपत्तियों की कुल मात्रा को दर्शाता है। किसी संपत्ति के संबंध में ट्रेडिंग वॉल्यूम जितना अधिक होगा वह संपत्ति उतनी ही अधिक तरल होगी यानी उसे आसानी से खरीदा और बेचा जा सकेगा।
मार्केट डेप्थ: मार्केट डेप्थ यह बताता है कि, किसी संपत्ति को खरीदने और बेचने के लिए बाजार में कितने ऑर्डर सक्रिय हैं। यदि खरीदने और बेचने वालों की संख्या अधिक है तो यह बाजार के अधिक तरल होने के बारे में बताता है।
डेस-ऑन-मार्केट: यह किसी रियल एस्टेट बाजार के संबंध में तरलता की जानकारी देता है। डेस-ऑन-मार्केट से आशय है कि, कोई रियल एस्टेट संपत्ति जैसे लैंड, अपार्टमेंट, मकान इत्यादि कितने दिनों तक बाजार में बेचे जाने के लिए सूचीबद्ध रहती है। यदि संपत्तियाँ तेजी से बिक जाती हैं तो यह उस रियल एस्टेट मार्केट के तरल होने को दर्शाता है।
अकाउंटिंग लिक्विडिटी
अकाउंटिंग लिक्विडिटी यह बताती है कि किसी व्यक्ति या संगठन के पास मौजूद एसेट्स को कितनी जल्दी और आसानी से नकदी में बदला जा सकता है ताकि वे अपने वर्तमान वित्तीय दायित्वों जैसे लोन इत्यादि की पूर्ति कर सकें। लेखांकन तरलता को मापने के लिए भी कई तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे करेंट रेशियो, क्विक रेशियो, कैश रेशियो इत्यादि।
करेंट रेशियो या चालू अनुपात: करेंट रेशियो किसी कंपनी के करेंट एसेट्स (जिन्हें एक वर्ष में उचित रूप से नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है) की तुलना उसकी करेंट लायबिलिटी (देनदारियों) के साथ करता है। जिससे कंपनी की अपनी अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने की क्षमता के बारे में पता चलता है।
क्विक रेशियो या एसिड टेस्ट रेशियो: किसी कंपनी की अकाउंटिंग लिक्विडिटी मापने का यह तरीका करेंट रेशियो से अधिक सख्त है क्योंकि इसमें कंपनी की इन्वेंटरी तथा अन्य एसेट्स को शामिल नहीं किया जाता है। यहाँ कंपनी की देनदारियों की तुलना केवल नकद, नकद के समकक्ष, अल्पकालिक निवेश इत्यादि को शामिल किया जाता है।
कैश रेशियो या नकदी अनुपात: यह अकाउंटिंग लिक्विडिटी मापने का सबसे सटीक तरीका है, जो केवल नकदी और नकदी के समकक्ष के माध्यम से किसी कंपनी की वर्तमान देनदारियों को चुकाने की क्षमता को मापता है।
लिक्विडिटी क्यों महत्वपूर्ण है?
तरलता किसी भी बाजार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यदि बाजार में तरलता नहीं होगी, तो किसी एसेट या सिक्योरिटी को नकदी में बदलना मुश्किल हो जाएगा और तरह-तरह के एसेट क्लास में निवेश करने का भी कोई मतलब नहीं रहेगा।
यह भी पढ़ें : इंडेक्सेशन क्या होता है और इससे कैसे कम हो जाता है आपका टैक्स?
उदाहरण के लिए, मान लीजिए आपके पास एक बहुत ही दुर्लभ पेंटिंग है, जिसकी कीमत तकरीबन दस करोड़ रुपये है। अब यदि आपको किसी मेडिकल इमरजेंसी या अन्य वित्तीय संकट से निपटने के लिए तत्काल नकदी की आवश्यकता पड़ती है, तो इतने कम समय में आपकी पेंटिंग के लिए कोई खरीदार मिलना मुश्किल होगा। लिहाजा जरूरत के समय हम अपने एसेट्स को नकदी में बदल सकें इसके लिए किसी भी एसेट की तरलता (Liquidity) पर विचार किया जाना चाहिए।
सार-संक्षेप
तरलता (लिक्विडिटी) किसी एसेट की वह विशेषता है जो बताती है कि, उसे कितनी आसानी से खरीदा या बेचा जा सकता है। दूसरे शब्दों में उसे कितनी आसानी से नकदी (कैश) में परिवर्तित किया जा सकता है।
चूँकि नकदी को तत्काल किसी भी दूसरी संपत्ति, परिसंपत्ति इत्यादि में परिवर्तित किया जा सकता है अतः इसे सबसे अधिक तरल माना जाता है और इसके आधार पर ही तरलता की गणना की जाती है।
जिस एसेट की नकदी तक जितनी त्वरित पहुंच होती है उसकी तरलता भी उतनी ही अधिक होती है। नकदी के बाद दूसरी सबसे अधिक तरल परिसंपत्तियों में स्टॉक, बॉन्ड, म्यूचुअल फंड्स तथा अन्य एक्सचेंज-ट्रेडेड प्रतिभूतियां शामिल हैं। मूर्त वस्तुएं जैसे कोई मकान इत्यादि कम तरल होते हैं, जिन्हें बेचने में अधिक समय, प्रयास और लागत लग सकती है।