Tuesday, December 3, 2024

भारतीय रिजर्व बैंक या RBI क्या है और यह क्या काम करता है?

Text Size:
संक्षेप में

भारतीय रिजर्व बैंक या RBI भारत का सेंट्रल बैंक है। किसी देश का सेंट्रल बैंक एक सार्वजनिक संस्थान होता है जो मुख्य रूप से उस देश की मुद्रा का प्रबंधन करता है। इसके साथ ही केन्द्रीय बैंक का काम देश के लिए एक मौद्रिक नीति (Monetary Policy) बनाना तथा उसे लागू करना भी होता है।

यहाँ आपने आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के विषय में संक्षेप में जाना। इस लेख में आगे विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे कि, भारतीय रिजर्व बैंक क्या है, भारतीय रिजर्व बैंक के क्या कार्य हैं, भारतीय रिजर्व बैंक कैसे काम करता है तथा भारतीय रिजर्व बैंक देश के आर्थिक विकास में कैसे योगदान देता है?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) क्या है?

भारतीय रिजर्व बैंक देश का केन्द्रीय बैंक है। केन्द्रीय बैंक होने का मतलब है कि यह देश में बैंकिंग क्षेत्र के नियामक के रूप में काम करता है यानी देश में संचालित होने वाले बैंकों के लिए नियम कानून तय करता है। इसके साथ ही रिजर्व बैंक भारतीय मुद्रा का प्रबंधन, देश में मौद्रिक नीति के निर्माण एवं क्रियान्वयन समेत कई अन्य कार्य करता है।

भारतीय रिजर्व बैंक की शुरुआत कब हुई?

भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना का सुझाव सर्वप्रथम 1926 में हिल्टन यंग आयोग द्वारा दिया गया था। इसके उपरांत सन् 1931 में पुनः भारतीय केंद्रीय बैंक जाँच समिति द्वारा एक रिज़र्व बैंक की स्थापना हेतु सिफारिश की गई। इन्हीं सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए सन् 1934 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 हुआ।

इसके फलस्वरूप 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) की स्थापना हुई। प्रारंभ में यह निजी क्षेत्र के नियंत्रण में था किंतु 1949 में इसका राष्ट्रीकरण कर दिया गया।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की संरचना

भारतीय रिज़र्व बैंक का मुख्यालय मुम्बई में स्थित है एवं चार उप कार्यालय क्रमशः दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता में हैं। इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक के 27 क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं, जो विभिन्न राज्यों में स्थित हैं। रिज़र्व बैंक के समस्त मुख्य कार्यों का निर्वहन एक केंद्रीय बोर्ड द्वारा किया जाता है इस बोर्ड में कुल 21 सदस्य होते हैं जो निम्न हैं।

  • एक गवर्नर
  • अधिकतम चार उप गवर्नर
  • केंद्र सरकार द्वारा नामित 10 सदस्य जो अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष अनुभव रखते हों।
  • केंद्र सरकार के 2 प्रतिनिधि
  • चारों उप कार्यालयों के एक एक प्रतिनिधि

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है। गौरतलब है कि, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का कार्यकाल पूर्ण होने के उपरांत पुनः नियुक्ति भी करी जा सकती है।

भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य

भारतीय रिज़र्व बैंक मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य करता है।

  • मौद्रिक नीति का निर्माण एवं कार्यान्वयन
  • बैंकों के बैंक तथा नियामक का कार्य
  • मुद्रा जारी करने का कार्य
  • सरकार के बैंक के रूप में कार्य
  • विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षण
  • विदेशी विनिमय दर का नियमन

मौद्रिक नीति (Monetary Policy) का निर्माण एवं क्रियान्वयन

किसी भी देश के केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्वपूर्ण काम उस देश में मौद्रिक नीति (Monetary Policy) का निर्माण तथा उनका क्रियान्वयन करना होता है। मौद्रिक नीति का तात्पर्य ऐसी नीति से है, जिसके द्वारा अर्थव्यवस्था में मुद्रा या पैसे के प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है।

गौरतलब है कि किसी भी अर्थव्यवस्था में पैसे का अधिक प्रवाह महँगाई (Inflation) का कारण बनता है, वहीं मुद्रा की मात्रा कम हो जाने से अपस्फीति (Deflation) जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को संतुलित करना बेहद आवश्यक होता है।

यह भी पढ़ें : विदेशी मुद्रा भंडार क्या होता है? किसी देश के लिए यह क्यों जरूरी है?

आइये समझते हैं किस प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक देश में मुद्रा के प्रवाह को नियंत्रित करता है। किन्तु उससे पूर्व यह जानना आवश्यक है कि किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह किस प्रकार होता है। रिजर्व बैंक तथा देश की अर्थव्यवस्था के मध्य विभिन्न प्रकार के बैंक एक कड़ी का कार्य करते हैं और यही मुख्य रूप से किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह करते हैं।

बैंक आम लोगों, उद्योगों, कंपनियों आदि को ऋण देते हैं। इस ऋण से उद्योगों को बढ़ने में मदद मिलती है, नई नौकरियों का सृजन होता है तथा रोजगार के बढ़ने से अधिक लोगों के पास पैसा आता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह मुख्यतः बैंकों द्वारा उपलब्ध कराए गए ऋण से ही होता है। अब चर्चा करते हैं मुद्रा प्रवाह को नियंत्रित करने की तो इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक निम्न तरीकों या टूल्स का प्रयोग करता है।

  • CRR तथा SLR
  • रेपो रेट तथा बैंक रेट
  • रिवर्स रेपो रेट

#1 CRR तथा SLR

प्रत्येक बैंक के लिए यह अनिवार्य है कि, वह अपनी कुल जमा राशि का कुछ प्रतिशत रिजर्व बैंक (RBI) के पास नगदी के रूप में रिजर्व रखे, इस रिजर्व को CRR (Cash Reserve Ratio) कहा जता है। इसके अतिरिक्त बैंकों के लिए यह भी अनिवार्य होता है कि, बैंक कुल जमा का एक हिस्सा अपने पास सरकारी प्रतिभूतियों, सोने या नगदी के रूप में रिजर्व रखे और इस रिजर्व को SLR (Statutory Liquidity Ratio) कहा जाता है।

CRR तथा SLR जैसे रिजर्व का मुख्य उद्देश्य बैंक को किसी वित्तीय संकट की स्थिति से बचाना होता है। इस प्रकार जब अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह बढ़ाना हो तो रिजर्व बैंक CRR तथा SLR की दर घटा देता है परिणामस्वरूप बैंकों के पास ऋण देने के लिए पूर्व की तुलना में अधिक धन होता है और बैंक सस्ती दरों में ऋण मुहैया कराते हैं।

इसके विपरीत बाजार में जब मुद्रा की मात्रा कम करनी हो तो आरबीआई CRR तथा SLR की दरों में व्रद्धि कर देता है। ऐसा करने से बैंकों को पहले की तुलना में अधिक पैसा रिजर्व के रूप में रखना पड़ता है और बैंकों के पास ऋण देने के लिए पैसा कम हो जाता है। नतीज़न बैंक ऋण पर ब्याज दरें बढ़ा देते हैं और बैंकों से लिए जाने वाले लोन में कमी आती है।

#2 रेपो रेट तथा बैंक रेट

रेपो रेट तथा बैंक रेट दोनों वह दरें हैं जिस पर बैंक, आरबीआई से ऋण लेते हैं। दोनों में अंतर की बात करें तो जिस ब्याज दर पर बैंक शॉर्ट टर्म के लिए रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं उसे बैंक रेट कहा जाता है।

जबकि वह ब्याज दर जिस पर बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रख कर रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं उसे रेपो रेट कहा जाता है। इन दोनों दरों में कमी या वृद्धि करने से रिजर्व बैंक बाजार में मुद्रा के प्रवाह को नियंत्रित करता है।

#3 रिवर्स रेपो रेट

वह दर जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक कमर्शियल बैंकों से कर्ज लेता है, रिवर्स रेपो दर कहलाती है। अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो रेट कम कर देता है, जिससे बैंकों को अपना धन आरबीआई को देने के बजाय ग्राहकों को देने में अधिक लाभ होता है।

इसके विपरीत मुद्रा प्रवाह कम करने के लिए आरबीआई रिवर्स रेपो रेट को बढ़ा देता है। ऐसी स्थिति में बैंकों को अपना पैसा ग्राहकों को देने के बजाय आरबीआई को देने में अधिक फायदा होता है। आरबीआई द्वारा प्रत्येक दो माह बाद मौद्रिक नीति जारी की जाती है अर्थात ऊपर बताए गई सभी दरों को परिस्थिति के अनुसार बदला जाता है।

बैंकों के नियामक के रूप में

रिजर्व बैंक सभी बैंकों के नियामक के रूप में भी कार्य करता है अर्थात सभी बैंकों के लिए नियम तथा कानूनों का निर्धारण करता है। रिजर्व बैंक को यह अधिकार बैंकिंग अधिनियम 1949 के तहत प्राप्त हैं।

इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक, बैंकों के बैंक की भूमिका भी निभाता है दूसरे शब्दों में बैंक अपना अतिरिक्त धन रिजर्व बैंक के पास संचित कर सकते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर रिजर्व बैंक से उधार ले सकते हैं।

मुद्रा जारी करने का कार्य

केंद्रीय बैंक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) भारत में मुद्रा जारी करने का कार्य भी करता है, जिनमें 2 रुपये से लेकर 2,000 रुपये तक के बैंक नोट शामिल हैं। गौरतलब है कि, 1 रुपये के नोट तथा सिक्कों को भारत सरकार द्वारा जारी किया जाता है।

सरकार के बैंकर के रूप में

भारतीय रिजर्व बैंक सरकार (केंद्र अथवा राज्य सरकारों) के बैंकर की भूमिका में भी काम करता है। केंद्र तथा राज्य सरकारों के खातों का प्रबंधन करने के साथ-साथ यह सरकारों की तरफ से सरकारी प्रतिभूतियों या बॉन्ड जारी कर सरकार के खर्चों के लिए धन जुटाने का कार्य करता है।

विदेशी मुद्रा भंडारण का कार्य

भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999 के तहत विदेशी मुद्रा का भंडारण करता है, जिससे अन्य देशों के साथ व्यापार को आसान बनाया जा सके।

विदेशी विनिमय दर का नियमन

विदेशी मुद्रा के भंडारण के अतिरिक्त रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा की विनिमय दर यानी एक्सचेंज रेट का नियमन भी करता है। विदेशी मुद्रा विनिमय दर का अर्थ है कि, किसी विदेशी मुद्रा के लिए हमें कितने भारतीय रुपयों का भुगतान करना होगा। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में अमेरिकी डॉलर का एक्सचेंज रेट 82 रुपये के करीब है, जिसका अर्थ है 1 अमेरिकी डॉलर के लिए हमें 82 भारतीय रुपयों का भुगतान करना होगा।

प्रारंभ में एक्सचेंज रेट का पूर्णतः निर्धारण रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता था किंतु साल 1991 में आई आर्थिक मंदी के चलते विदेशी विनिमय दर को बाजार के नियंत्रण में छोड़ना आवश्यक हो गया। तब से विदेशी मुद्रा का एक्सचेंज रेट बाजार (मांग और आपूर्ति) द्वारा तय किया जाता है। किंतु यह एक्सचेंज रेट स्थिर रहे इसके लिए रिजर्व बैंक अहम भूमिका निभाता है।

यह भी पढ़ें : शेयर बाजार में Short Selling क्या होती है और इसे कैसे और क्यों किया जाता है?

बाजार में विदेशी मुद्रा की मात्रा अधिक होने पर भारतीय रिजर्व बैंक उन्हें खरीद लेता है और विदेशी मुद्रा भंडार में जमा कर लेता है तथा विदेशी मुद्रा की कमी होने पर विदेशी मुद्रा भंडार से विदेशी मुद्रा का बाजार में प्रवाह करता है। इस प्रकार भारतीय रुपये तथा विदेशी मुद्रा के एक्सचेंज रेट में स्थिरता बनी रहती है।

निष्कर्ष

भारतीय रिजर्व बैंक देश का केन्द्रीय बैंक है, जिसकी स्थापना साल 1935 में की गई। रिजर्व बैंक भारत में होने वाली सभी आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों का केंद्र है।

रिजर्व बैंक देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बैंकों के रेग्युलेटर के रूप काम करता है साथ ही यह देश में भारतीय करेंसी का प्रबंधन तथा उसके प्रवाह को भी नियंत्रित करता है। इन कार्यों के अलावा आरबीआई देश में विदेशी मुद्रा का भंडारण एवं प्रबंधन, बैंकों के बैंक तथा सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करता है।

लेटेस्ट आर्टिकल

विज्ञापन spot_img