इंटरनेट की बढ़ती पहुँच तथा बढ़ती आर्थिक साक्षरता के चलते लोग निवेश के पारंपरिक तरीकों को छोड़ बाज़ार तथा वित्तीय उपकरणों में निवेश कर रहे हैं। शेयर बाजार तथा म्युचुअल फंड में निवेश करने वाले निवेशकों की संख्या में साल दर साल इज़ाफ़ा हो रहा है। ऐसे में निवेशकों के लिए निवेश से प्राप्त हुए लाभ पर कर अथवा टैक्स की प्रक्रिया (Taxes on Share Market Profit) को समझना बेहद जरूरी हो जाता है।
आज के इस लेख में हम चर्चा करने जा रहे हैं शेयर बाजार से हुई कमाई पर लगने वाले टैक्स की, लेख में आगे विस्तार से जानेंगे अलग-अलग तरीकों से शेयर बाज़ार में किए गए निवेश द्वारा यदि कोई व्यक्ति लाभ अर्जित करता है, तो उसे अपने कुल लाभ का कितना फीसदी टैक्स के रूप में सरकार को चुकाना होगा तथा शेयर मार्केट से कितनी कमाई टैक्स फ्री है?
कर अथवा टैक्स क्यों जरूरी हैं?
कर किसी भी सरकार की आय का मुख्य स्रोत होता है। सरकारें अपने नागरिकों से विभिन्न प्रकार से कर की वसूली करती हैं तथा इस राशि को देश के विकास एवं संचालन में इस्तेमाल किया जाता है। लोगों द्वारा दिया जाने वाला कर मुख्यतः दो प्रकार का होता है, जिनमें प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes) तथा अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes) शामिल हैं।
अप्रत्यक्ष कर अर्थात किसी सेवा या वस्तु के उपभोग पर उपभोक्ता द्वारा दिया जाने वाला कर। भारत में अप्रत्यक्ष करों की वसूली के लिए GST (वस्तु एवं सेवा कर) व्यवस्था लागू की गई है। देश में रहने वाला प्रत्येक निवासी, जो किसी सेवा अथवा वस्तु का उपभोग करता है, वह अप्रत्यक्ष कर का भुगतान करता है, सामान्यतः यह कर वस्तु एवं सेवा की कीमत में जोड़ दिया जाता है।
इसके अतिरिक्त प्रत्यक्ष कर ऐसे कर हैं, जिनका भुगतान सरकार को सीधे तौर पर किया जाता है। प्रत्यक्ष करों के उदाहरण में आय पर दिया जाने वाला कर (Income Tax), पूँजी लाभ कर (Capital Gain Tax) आदि शामिल हैं।
शेयर बाजार से हुई कमाई पर कितना Tax लगता है?
शेयर बाजार में कोई व्यक्ति विभिन्न प्रकार से लाभ अर्जित कर सकता है, उदाहरण के तौर पर किसी कंपनी के शेयरों को कम दाम में खरीद कर उन्हें महँगे दामों में बेचना, फ्यूचर एवं ऑप्शन अनुबंध खरीदना तथा किसी कंपनी द्वारा शेयरधारकों को दिया जाने वाला लाभांश (Dividend) आदि। अलग-अलग प्रकार से प्राप्त किए गए लाभ पर कर की अलग व्यवस्था है, जिन्हें हम आगे समझेंगे।
शेयरों की बिक्री पर हुए मुनाफे में टैक्स
यदि कोई व्यक्ति किसी कंपनी के शेयर सस्ते दामों में खरीदता है तथा उन्हें भविष्य में महँगे दामों में बेचकर लाभ अर्जित करता है, तो उसे प्राप्त लाभ पर कैपिटल गेन टैक्स चुकाना होगा। यहाँ प्राप्त हुए लाभ के संबंध में किए गए निवेश की अवधि जानना बेहद आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति खरीदे गए शेयरों को 1 वर्ष या उससे कम समय में बेच कर लाभ अर्जित करता है, तो व्यक्ति उस लाभ पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स चुकाएगा वहीं, यदि वह शेयरों को 1 वर्ष की अवधि के बाद कभी भी बेचता है, तो उसे इस स्थिति में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होगा।
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आइए इन दोनों प्रकार के करों में अंतर को समझते हैं। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर व्यक्ति को 15% का कर चुकाना होता है, जबकि लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की स्थिति में यह दर 10% होती है, इसके अलावा इस श्रेणी में एक लाख तक का लाभ कर मुक्त होता है। शेयरों की बिक्री से हुए मुनाफ़े पर कर की व्यवस्था को नीचे दिए गए उदाहरण की सहायता से समझा जा सकता है,
पहली स्थिति
माना एक व्यक्ति रमेश किसी कंपनी XYZ में 1 लाख रुपये निवेश करता है, जिसके एक शेयर की कीमत 100 रुपये है। पहली स्थिति में रमेश 8 महीने बाद, जब XYZ कंपनी के एक शेयर का भाव 130 रुपये हो जाता है, अपने शेयर बेचने का निर्णय लेता है और कुल 30 हज़ार रुपये का लाभ अर्जित करता है। इस स्थिति में रमेश को शॉर्ट टर्म में कैपिटल का लाभ हुआ है अतः उसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स का भुगतान करना होगा, जो कुल लाभ का 15% तथा इस स्थिति में 4,500 रुपये हैं।
दूसरी स्थिति
मान लें कि, रमेश 1 वर्ष के पश्चात अपने शेयर 250 रुपये प्रति शेयर की दर से बेचता है तथा 1.5 लाख रुपयों का लाभ अर्जित करता है। चूँकि रमेश को लॉन्ग टर्म में कैपिटल का लाभ हुआ है अतः उसे अपने कुल लाभ का 10% लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स के रूप में चुकाना होगा। गौरतलब है कि, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की स्थिति में 1 लाख तक का लाभ कर मुक्त होता है अतः रमेश को वर्तमान परिस्थिति में 1.5 लाख – 1 लाख = 0.5 लाख पर ही कर चुकाने की आवश्यकता है।
तीसरी स्थिति
ऊपर हमनें शेयर बाज़ार से होने वाले लाभ पर कर की देयता को समझा, किन्तु किसी भी व्यक्ति को कर उसी स्थिति में चुकाना होता है, जब वह लाभ अर्जित करे। यदि किसी व्यक्ति को शेयर बाजार के निवेश से नुकसान हो तो उस स्थिति में सरकार द्वारा क्या व्यवस्था की गयी है, आइये उन्हें समझते हैं।
माना कि, रमेश XYZ के अतिरिक्त ABC कंपनी में भी 1 लाख का निवेश करता है, जिसके एक शेयर की कीमत XYZ की भाँति 100 रुपये है। भविष्य में ABC के प्रति शेयर की कीमत 80 रुपये तथा XYZ के एक शेयर के कीमत 150 रुपये हो जाती है और रमेश अपनी दोनों कंपनियों के शेयर बेचने का निर्णय लेता है।
रमेश को XYZ कंपनी से 50 हज़ार का लाभ हुआ, जबकि ABC कंपनी के निवेश पर उसे 20 हज़ार रुपयों का नुकसान भी उठाना पड़ा, चूँकि कर कुल लाभ पर दिया जाता है अतः रमेश को 50,000 – 20,000 = 30,000 रुपयों पर ही कैपिटल गेन टैक्स चुकाना होगा, जो निवेश की अवधि के अनुसार (शॉर्ट अथवा लॉन्ग टर्म) तय किया जाएगा।
यदि किसी व्यक्ति को शेयर बाजार में किए गए लॉन्ग टर्म निवेश (एक वर्ष से अधिक अवधि का निवेश) में हानि होती है, तो वह व्यक्ति उस हानि को आने वाले आठ वर्षों तक के निवेश में समायोजित (Adjust) कर सकता है। इसके अतिरिक्त कोई व्यक्ति जिसनें शेयर बाज़ार में शॉर्ट टर्म निवेश (एक वर्ष से कम अवधि का निवेश) किया है तथा उसे हानि होती है, तो वह उसे आने वाले आठ वर्षों तक किए गए शॉर्ट टर्म अथवा लॉन्ग टर्म किसी भी निवेश के लाभ के साथ समायोजित कर सकता है, किन्तु लॉन्ग टर्म के निवेश पर हुई हानि को शॉर्ट टर्म के निवेश में समायोजित नहीं किया जा सकता।
इंट्रा-डे ट्रेडिंग के लाभ पर टैक्स
इंट्रा-डे ट्रेडिंग अर्थात किसी कंपनी के शेयरों को एक ही दिन में खरीद के बेच देना। इस स्थिति में शेयर व्यक्ति के डीमैट खाते में जमा नहीं किये जाते हैं। हालाँकि इंट्रा-डे ट्रेडिंग शॉर्ट टर्म निवेश के समान है, किंतु इससे प्राप्त मुनाफे पर टैक्स की व्यवस्था शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स से अलग है।
इंट्रा-डे ट्रेडिंग में हुए लाभ को किसी व्यक्ति की आय (Speculative Income) में शामिल किया जाता है, अतः इस पर व्यक्ति को आयकर चुकाना होता है, जो आयकर की विभिन्न दरों के अनुसार तय किया जाता है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति को किसी वित्तीय वर्ष के दौरान इंट्रा-डे ट्रेडिंग में हानि होती है, तो उस स्थिति में वह उस हानि को अगले चार वर्षों तक अपनी आय (Speculative Income) में समायोजित कर सकता है।
फ्यूचर एवं ऑप्शन ट्रेडिंग के मुनाफे पर टैक्स
फ्यूचर एवं ऑप्शन डेरिवेटिव वित्तीय उपकरण हैं, इंट्रा-डे की ही भाँति फ्यूचर तथा ऑप्शन से प्राप्त लाभ को भी किसी व्यक्ति की आय (Non-Speculative Income) में जोड़ा जाता है तथा उस पर आयकर दरों के अनुसार कर चुकाना होता है, किन्तु इंट्रा-डे के विपरीत यहाँ हुई हानि को निवेशक अगले आठ वर्षों तक की आय (Non-Speculative Income) में समायोजित कर सकता है।
लाभांश अथवा Dividend पर टैक्स
कई कंपनीयाँ अपने कुल वार्षिक लाभ का एक हिस्सा अपने शेयरधारकों में वितरित करती हैं, जिसे लाभांश (Dividend) कहा जाता है। अप्रैल 2020 से पहले किसी निवेशक को लाभांश पर टैक्स चुकाने की आवश्यकता नहीं थी, बल्कि कंपनी पर ही 15% का Dividend Distribution Tax लगाया जाता था, किन्तु अप्रैल 2020 के बाद से DDT की व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है तथा लाभांश से प्राप्त आय पर टैक्स भुगतान की जिम्मेदारी निवेशक को सौंप दी गई है, अतः अप्रैल 2020 के बाद लाभांश के रूप में प्राप्त रकम पर निवेशक को आयकर की विभिन्न दरों के आधार पर कर चुकाना होगा।
म्यूचुअल फंड की कमाई पर टैक्स
म्युचुअल फंड मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं, जिनमें “Equity” तथा “Debt” म्यूचुअल फंड शामिल हैं। इक्विटी अर्थात ऐसे फंड जो अपनी पूँजी का अधिकांश भाग (65% अथवा इससे अधिक) शेयर बाजार में निवेश करते हैं वहीं डेट म्यूचुअल फंड ऐसे फंड होते हैं जो अपनी पूँजी का अधिकांश हिस्सा (65% अथवा इससे अधिक) डेट वित्तीय उपकरणों जैसे बांड्स, डिबेंचर आदि में निवेश करते हैं। इक्विटी म्युचुअल फंड में टैक्स शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-बिक्री के लाभ पर दिए जाने वाले टैक्स की ही भाँति चुकाना होता है, जिसके बारे में हमनें ऊपर विस्तार से समझा।
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आइए “डेट” म्यूचुअल फंड से हुए लाभ पर टैक्स की व्यवस्था को समझते हैं। हालाँकि डेट में होने वाला लाभ भी लॉन्ग टर्म तथा शार्ट टर्म कैपिटल गेन के अनुसार ही परिभाषित किया जाता है, किंतु शेयर बाजार के विपरीत यहाँ इन दोनों की अवधि तथा टैक्स की व्यवस्था भिन्न है। डेट म्युचुअल फंड में यदि आप 3 वर्ष या उससे कम अवधि के लिए निवेश करते हैं तो, उसे शॉर्ट टर्म निवेश समझा जाएगा, वहीं यदि निवेश 3 वर्ष से अधिक समय के लिए किया गया है तो उसे लॉन्ग टर्म निवेश की श्रेणी में शामिल किया जाएगा।
यदि कोई व्यक्ति शॉर्ट टर्म के लिए डेट म्यूचुअल फंड में निवेश करता है तथा लाभ अर्जित करता है, तो उस लाभ को व्यक्ति की आय में जोड़ दिया जाता है, जिस पर टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स का भुगतान करना होगा। वहीं यदि व्यक्ति लॉन्ग टर्म के निवेश द्वारा लाभ प्राप्त करता है, तो इस स्थिति में उसे 20% का टैक्स चुकाना होगा। हालांकि इसमें निवेशक को महँगाई से छूट दी जाती है। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स की गणना निम्नलिखित सूत्र से की जाती है।
कुल निवेश की गई धनराशि x निवेश से बाहर आने के वर्ष का CII / निवेश करने के वर्ष का CII
CII अथवा Cost Inflation Index एक सूचकांक है, जो CBDT द्वारा प्रतिवर्ष जारी किया जाता है। इस सूचकांक से यह जानने में सहायता मिलती है कि, महँगाई के कारण किसी संपत्ति की कीमत में पिछले वर्षों की तुलना में कितना इज़ाफ़ा हुआ है।
शेयर मार्केट से कितनी कमाई टैक्स फ्री है?
शेयर बाजार में अलग-अलग तरीके से हुई कमाई पर आपको कितना टैक्स चुकाना होगा इसके बारे में हमनें ऊपर विस्तार से समझाया है अतः यदि कोई व्यक्ति शेयर बाजार से Long Term Capital Gain अर्जित करता है तो उसे 1 लाख तक की कमाई पर कोई टैक्स नहीं देना होता है इसके साथ ही यदि व्यक्ति को Debt Mutual Funds के निवेश पर हुए Short Term Capital Gain, Intraday Trading, F&O Trading तथा Dividend के रूप में कमाई होती है तो इसे व्यक्ति की आय / Income में जोड़ दिया जाता है अतः यदि आपकी सभी स्रोतों से कुल वार्षिक आय 7 लाख तक है तो वह टैक्स के दायरे से मुक्त होती है।
शेयर बाज़र से हुई कमाई पर आपको केवल निम्नलिखित परिस्थितियों में ही टैक्स देना होगा-
- यदि आपका Long Term Capital Gain 1 लाख से अधिक हो
- यदि आपको Short Term capital Gain हुआ हो
- यदि आपके अन्य आय के स्रोतों समेत Debt Mutual Funds के निवेश पर हुए Short Term Capital Gain, Intraday Trading, F&O Trading तथा Dividend के रूप में आपकी कुल कमाई 7 लाख से अधिक हो