शेयर मार्केट में एएसएम या ‘एडिशनल सर्विलांस मेजर’ क्या है?

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किसी भी स्टॉक मार्केट में नियामक (Regulator) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह निवेशकों के हितों की रक्षा करता है तथा बाजार के सभी प्रतिभागियों के लिए एक सुरक्षित, पारदर्शी और निष्पक्ष वातावरण सुनिश्चित करता है। भारत में बाजार नियामक के तौर पर सेबी यानी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड की स्थापना की गई है।

शेयर मार्केट के कामकाज पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से संचालित हो इसके लिए सेबी विभिन्न स्तरों पर कार्य करता है, जिनमें नियम एवं विनियम लागू करना, बाजार गतिविधियों की निगरानी करना आदि शामिल हैं।

निगरानी के अंतर्गत सेबी का एएसएम फ्रेमवर्क महत्वपूर्ण है, जिसकी हम यहाँ चर्चा करने जा रहे हैं। लेख में आगे विस्तार से समझेंगे शेयर मार्केट में ASM फ्रेमवर्क क्या होता है और किसी स्टॉक को इसमें क्यों डाला जाता है?

एएसएम या ‘एडिशनल सर्विलांस मेजर’ क्या है?

एएसएम का पूरा नाम “अतिरिक्त निगरानी उपाय” है। यह एक निगरानी तंत्र है, जिसे निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है और इसका क्रियान्वयन सेबी तथा स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। ऐसे स्टॉक्स जो अनियमित ट्रेडिंग पैटर्न अर्थात उनकी कीमत और ट्रेडिंग वॉल्यूम में असामान्य उतार-चढ़ाव प्रदर्शित करते हैं, उन्हें इस निगरानी तंत्र के तहत शामिल किया जाता है।

ASM फ्रेमवर्क के तहत किसी स्टॉक को शामिल किये जाने पर उसकी ट्रेडिंग गतिविधियों को करीब से मॉनिटर किया जाता है, इसके साथ ही ऐसे स्टॉक की ट्रेडिंग गतिविधियों को कुछ हद तक नियंत्रित भी किया जा सकता है।

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किसी स्टॉक को ASM फ्रेमवर्क में शामिल करने के पीछे सेबी तथा स्टॉक एक्सचेंजों का उद्देश्य बाजार में निष्पक्ष तथा पारदर्शी वित्तीय गतिविधियाँ सुनिश्चित करना तथा बाजार की अखंडता को बनाए रखना है। ताकि किसी हेरा-फेरी या अनैतिक गतिविधियों के चलते स्टॉक्स की नाजायज मूल्य वृद्धि से निवेशकों को नुकसान न हो।

किसी स्टॉक को निगरानी तंत्र के तहत शामिल किये जाने से निवेशकों के लिए ऐसे स्टॉक्स को शॉर्टलिस्ट करना आसान हो जाता है, जो अधिक जोखिम भरे हैं या जिनके लेन-देन में उन्हें सावधानी बरतने के जरूरत है।

ASM के तहत शामिल किये जाने के लिए मानदंड

किसी प्रतिभूति जैसे स्टॉक को एएसएम फ्रेमवर्क के तहत शामिल किये जाने के लिए सेबी और स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा संयुक्त रूप से कुछ वस्तुनिष्ठ मानदंड तय किए गए हैं, जिसके तहत निम्नलिखित पैरामीटर शामिल हैं

  • हाई-लो वेरिएशन
  • मार्केट कैपिटलाइजेशन
  • क्लाइंट कंसन्ट्रेशन
  • क्लोज-टू-क्लोज प्राइस वेरिएशन
  • वॉल्यूम वेरिएशन
  • डिलीवरी परसेंटेज
  • नंबर ऑफ यूनिक PANs
  • मूल्य से आय अनुपात या पी/ई

शेयर मार्केट में ‘हाई’ तथा ‘लो’ किसी स्टॉक की एक निश्चित अवधि के दौरान उच्चतम और निम्नतम कीमतों को दर्शाते हैं। यदि किसी निर्धारित अवधि में स्टॉक की उच्चतम और निम्नतम कीमतों का अंतर तय मानदंडों से अधिक रहता है तो यह उस स्टॉक की अस्थिरता तथा बाजार मैनिपुलेशन की संभावना को दर्शाता है। ऐसे स्टॉक को एएसएम फ्रेमवर्क के तहत शामिल किया जा सकता है।

किसी कारोबारी दिन के समापन पर एक स्टॉक का जो मूल्य होता है उसे स्टॉक की क्लोजिंग प्राइस (Closing Price) कहा जाता है। किसी स्टॉक की यह कीमत एक निर्धारित समय सीमा में यदि तय मानकों से अधिक है तो ऐसे स्टॉक को ASM लिस्ट के अंतर्गत निगरानी में रखा जाता है।

मार्केट कैपिटलाइजेशन किसी कंपनी की कुल मार्केट वैल्यू को दर्शाता है। मार्केट कैप का इस्तेमाल अकेले किसी स्टॉक को ASM फ्रेमवर्क के तहत शामिल करने में नहीं होता है, बल्कि इसका इस्तेमाल अन्य मानदंडों जैसे हाई-लो वेरिएशन, क्लोज-टू-क्लोज प्राइस वेरिएशन आदि के साथ संयुक्त रूप से किया जाता है।

क्लाइंट कंसन्ट्रेशन का इस्तेमाल यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि, किसी कंपनी के शेयरों का कितना फीसदी, कितने शेयरधारकों के पास है। यदि कुछ गिने-चुने शेयरधारकों के पास एक कंपनी के बहुत अधिक शेयर हैं तो ऐसे में अनैतिक ट्रेडिंग गतिविधियों तथा मार्केट मैनिपुलेशन की संभावना बढ़ जाती है।

ट्रेडिंग वॉल्यूम का मतलब किसी स्टॉक की उस मात्रा से है, जो शेयर बाजार में ट्रेड करी जा रही है। यदि किसी स्टॉक के ट्रेडिंग वॉल्यूम पैटर्न में बहुत ज्यादा परिवर्तन दिखाई देता है जैसे अचानक लोग उस स्टॉक में सामान्य से अधिक दिलचस्पी अथवा उदासीनता दिखाने लगते हैं, तो इसे ASM सूची में शामिल किया जा सकता है।

शेयर मार्केट में डिलीवरी तथा इंट्रा-डे दो अलग-अलग तरीकों से ट्रेडिंग करी जा सकती है। यदि आप किसी स्टॉक को एक ही दिन में खरीद कर बेच देते हैं तो इसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहा जाता है और इस स्थिति में खरीदे गए शेयर वास्तव में आपके डीमैट खाते में क्रेडिट नहीं किये जाते हैं।

वहीं डिलीवरी ट्रेडिंग में लंबे समय के लिए स्टॉक्स खरीदे जाते हैं और यहाँ वास्तव में शेयरों की डिलीवरी आपके खाते में होती है। अब यदि किसी स्टॉक की डिलीवरी परसेंटेज बहुत कम है या अधिकांश निवेशक केवल इंट्रा-डे ट्रेडिंग कर रहे हैं तो यह मार्केट मैनिपुलेशन के संकेत देता है और एक्सचेंज ऐसे स्टॉक को निगरानी में रख सकते हैं।

‘नंबर ऑफ यूनिक पैन’ से आशय है कि, PAN कार्ड के आधार पर कितने यूनिक निवेशक किसी स्टॉक में ट्रेड कर रहे हैं। अधिक संख्या में यूनिक पैन, निवेशकों की एक व्यापक भागीदारी को दिखाता है, लेकिन किसी स्टॉक को यदि कुछ निवेशक ही बार-बार खरीद-बेच रहे हैं, तो यह मार्केट मैनिपुलेशन की तरफ इशारा करता है।

पी/ई अनुपात किसी शेयर का मूल्यांकन करने के लिए एक महत्वपूर्ण मीट्रिक है, यह किसी शेयर की कीमत की तुलना प्रति शेयर आय से करता है। दूसरे शब्दों में यह अनुपात इस बात का अंदाजा लगाने में मदद करता है कि, किसी शेयर की असल कीमत उसकी बाजार कीमत से कितनी कम या ज्यादा है। यदि किसी स्टॉक का पी/ई अनुपात असामान्य रूप से कम या ज्यादा है, तो इसे ASM फ्रेमवर्क में शामिल किया जा सकता है।

ASM फ्रेमवर्क के प्रकार

स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा ASM फ्रेमवर्क के तहत लॉन्ग-टर्म एएसएम तथा शॉर्ट-टर्म एएसएम दो अलग-अलग श्रेणियाँ बनाई गई हैं। प्रत्येक श्रेणी में स्टॉक्स के चयन हेतु अलग-अलग मानदंड निर्धारित किये गए हैं।

शॉर्ट-टर्म एएसएम लिस्ट में ऐसे स्टॉक्स को शामिल किया जाता है, जो छोटी अवधि, सामान्यतः 5 से 15 ट्रेडिंग दिवसों के भीतर असामान्य ट्रेडिंग पैटर्न प्रदर्शित करते हैं। इसके तहत क्लोज-टू-क्लोज प्राइस वेरिएशन, क्लाइंट कंसन्ट्रेशन, हाई-लो वेरिएशन तथा यूनिक PAN जैसे पैरामीटरों के आधार पर स्टॉक को जाँचा जाता है।

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यदि कोई स्टॉक लगातार लंबी अवधि, सामान्यतः तीन महीनों से एक साल तक असामान्य ट्रेडिंग गतिविधियाँ दर्शाता है तो उसे लॉन्ग-टर्म ASM लिस्ट के अंतर्गत शामिल किया जा सकता है। ऐसे स्टॉक्स को लंबी अवधि के लिए निगरानी में रखा जाता है तथा इनकी ट्रेडिंग गतिविधियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

उपरोक्त दोनों सूचियों में प्रत्येक के अंतर्गत अलग-अलग स्टेज भी होती हैं। लॉन्ग-टर्म एएसएम के तहत चार, जबकि शॉर्ट-टर्म एएसएम के तहत दो स्टेज हैं। प्रत्येक स्टेज के लिए निर्धारित मानदंड तथा शामिल किये जाने पर होने वाली कार्यवाहियाँ भी भिन्न होती है।

उदाहरण के तौर पर शॉर्ट-टर्म एएसएम लिस्ट की स्टेज-1 में शामिल किये जाने पर एक स्टॉक के ट्रेडिंग मार्जिन को 50% कर दिया जाता है, जबकि स्टेज-2 के लिए यह बढ़कर 100% हो जाता है।

ASM सूची से बाहर निकलना

एएसएम सूची से बाहर निकलने हेतु शॉर्ट-टर्म एएसएम तथा लॉन्ग-टर्म एएसएम दोनों के लिए अलग नियम हैं। शॉर्ट-टर्म में स्टॉक्स की समीक्षा (Review) छठे तथा सोलहवें ट्रेडिंग दिवस में होती है।

यदि समीक्षा के दौरान स्टॉक निगरानी मानदंडों को पूरा नहीं करता है तो उसे निगरानी फ्रेमवर्क से बाहर कर दिया जाता है और उस पर लगे प्रतिबंध, यदि कोई हों तो हटा दिए जाते हैं। वहीं कोई स्टॉक जो लॉन्ग-टर्म एएसएम में है, उसकी समीक्षा 90 दिनों के पश्चात करी जाती है और उसके स्टेटस में परिवर्तन किया जा सकता है।

ASM स्टॉक्स की लिस्ट कहाँ देखें

स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा समय-समय पर ASM सूची अपडेट करी जाती है, बीएसई तथा एनएसई की वेबसाइट के माध्यम से आप ASM फ्रेमवर्क के अंतर्गत शामिल किये गए स्टॉक, अवधि के आधार पर उनका वर्गीकरण तथा उनकी स्टेज को देख सकते हैं। ASM लिस्ट देखने के लिए नीचे एक्सचेंज वार दी गई लिंक पर क्लिक करें

ASM फ्रेमवर्क के तहत कार्यवाही

ऊपर आपने उन मानदंडों को समझा जिनके आधार पर किसी कंपनी को ASM फ्रेमवर्क के तहत शामिल किया जाता है अथवा उसकी ट्रेडिंग गतिविधियों पर खासा निगरानी रखी जाती है। आइए अब जानते हैं इस फ्रेमवर्क में आने से किसी कंपनी पर क्या प्रभाव पड़ता है या उस पर क्या कार्यवाही करी जाती है।

(i) एएसएम फ्रेमवर्क के तहत किसी स्टॉक को शामिल किये जाने पर निवेशक को 100% मार्जिन देना होगा अर्थात उसे कोई इंट्रा-डे लीवरेज प्रदान नहीं किया जाएगा।

(ii) एएसएम सूची में शामिल स्टॉक पर 5% का सर्किट फिल्टर लगाया जा सकता है, अर्थात किसी ट्रेडिंग दिन में स्टॉक की कीमतों में 5% का ही उतार-चढ़ाव आ सकता है।

(iii) यदि किसी स्टॉक को निगरानी तंत्र में रखा गया है, तो ऐसी कंपनियों के शेयरधारक अपनी इक्विटी को बैंक या किसी वित्तीय संस्थान में गिरवी नहीं रख सकते हैं।

(iv) यदि ASM फ्रेमवर्क के तहत शामिल स्टॉक्स निगरानी के दौरान निर्धारित मानदंडों को संतुष्ट करते हैं, तो उन्हें ट्रेड-फॉर-ट्रेड सूची में स्थानांतरित कर दिया जाता है, ऐसे स्टॉक्स में सिर्फ डिलीवरी ट्रेडिंग ही करी जा सकती है।

गौरतलब है कि, किसी स्टॉक को ASM फ्रेमवर्क के तहत शामिल किये जाने पर उसकी कॉर्पोरेट कार्रवाइयों जैसे बोनस एवं लाभांश वितरण, स्टॉक विभाजन आदि में कोई असर नहीं पड़ता यह पहले की तरह जारी रहती हैं। स्टॉक एक्सचेंज समय-समय पर एएसएम सूची की समीक्षा करते हैं और स्टॉक्स के स्टेटस को परिवर्तित करते हैं।

सार-संक्षेप

एएसएम या एडिशनल सर्विलांस मेजर बाजार नियामक तथा स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा डिजाइन किया गया एक निगरानी तंत्र है। इसके अंतर्गत ऐसे स्टॉक्स शामिल किये जाते हैं, जिनके ट्रेडिंग पैटर्न में असामान्य उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। ASM फ्रेमवर्क में शामिल किये जाने पर इन स्टॉक्स को पहले से निर्धारित मानदंडों के आधार पर मॉनिटर किया जाता है और यदि इन मानदंडों को संतुष्ट करता है तो कंपनी पर आवश्यक कार्यवाही करी जाती है।

एएसएम जैसे निगरानी तंत्र निवेशकों को अनैतिक ट्रेडिंग गतिविधियों तथा मार्केट मैनिपुलेशन से सुरक्षा प्रदान करने तथा एक निष्पक्ष और पारदर्शी बाजार संचालन को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।