नाबार्ड (NABARD) क्या है और यह क्या काम करता है?

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संसाधनों की अनुपलब्धता तथा आर्थिक गतिविधियों की कमी के चलते देश का ग्रामीण क्षेत्र विकास की दौड़ में शहरों से हमेशा पीछे रहा है और देश की आजादी के दौरान यह अंतर आज की तुलना में कहीं बड़ा था।

इस अंतर को कम करने तथा देश के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा साल 1982 में नाबार्ड (NABARD) की शुरुआत करी गई। इस लेख में आगे विस्तार से जानेंगे नाबार्ड क्या है, इसका पूरा नाम यानी नाबार्ड की फुल फॉर्म क्या है और यह ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए क्या काम करता है।

नाबार्ड (NABARD) क्या है?

नाबार्ड (NABARD) का पूरा नाम राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक है। इसकी स्थापना 12 जुलाई 1982 को हुई, जो राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम 1981 की रूपरेखा के तहत की गई थी। नाबार्ड का प्राथमिक उद्देश्य देश में कृषि वित्तपोषण तथा ग्रामीण क्षेत्रों की समृद्धि सुनिश्चित करना है।

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नाबार्ड पूर्ण रूप से भारत सरकार के स्वामित्व वाली संस्था है, जिसका प्रधान कार्यालय मुंबई में स्थित है। इसके अलावा राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों में नाबार्ड के 31 क्षेत्रीय कार्यालय, देश के उत्तरी, पूर्वी एवं दक्षिणी भागों में 04 प्रशिक्षण संस्थान और जिला स्तर पर 509 जिला विकास प्रबंधक भी कार्यरत हैं।

नाबार्ड के क्या कार्य हैं?

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) देश की ग्रामीण बैंकिंग प्रणाली का मुख्य विनियामक निकाय है और इसे शीर्ष विकास वित्त संस्थान (DFI) माना जाता है। नाबार्ड को कृषि तथा वित्तीय विकास से जुड़ी नीतियों एवं योजनाओं के निर्माण और उनके संचालन से संबंधित कई जिम्मेदारियाँ दी गई हैं। 

इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, लघु उद्योगों, कुटीर एवं ग्राम्य उद्योगों, हस्तशिल्प और दूसरे ग्रामीण शिल्पों तथा अन्य सहायक आर्थिक गतिविधियों के विकास हेतु ऋण एवं अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना और उनका विनियमन करना इत्यादि मुख्य रूप से शामिल हैं। आइए विभिन्न क्षेत्रों में नाबार्ड (NABARD) के अहम योगदान को समझते हैं।

भारत में कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में नाबार्ड महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कई योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

लघु एवं दीर्घ अवधि के लिए ऋण: नाबार्ड सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) तथा भूमि विकास बैंकों को रि-फाइनेंस कर किसानों को कृषि क्षेत्र या गैर-कृषि क्षेत्र की गतिविधियों जैसे लघु उद्योग, कुटीर उद्योग आदि के लिए सस्ती ब्याज दरों पर ऋण मुहैया करवाता है। इस उद्देश्य के लिए नाबार्ड द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड, रुपे किसान कार्ड आदि की शुरुआत भी करी गई है।

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रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (RIDF): यह नाबार्ड द्वारा स्थापित एक महत्वपूर्ण कोष है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देना है। यह कोष राज्य सरकारों और पंचायतों को मूलभूत सुविधाओं जैसे सड़कों, पुलों, सिंचाई एवं पेयजल परियोजनाओं आदि के लिए ऋण प्रदान करता है।

नाबार्ड की अन्य निधियाँ: इनके अलावा नाबार्ड द्वारा कई अन्य निधियाँ भी स्थापित करी गई हैं, जिनका उद्देश्य अलग-अलग क्षेत्रों में वित्तीय सहायता प्रदान करना है। जैस नाबार्ड अवसंरचना विकास सहायता (NIDA), दीर्घकालीन सिंचाई कोष (LTIF), वेयरहाउस इंफ्रास्ट्रक्चर फंड, खाद्य प्रसंस्करण कोष, उत्पादक संगठन विकास निधि इत्यादि।

स्वयं-सहायता समूहों (SHGs) को सहायता: नाबार्ड स्वयं-सहायता समूहों के लिए कई तरीके से कार्य करता है, जिनमें SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम की शुरुआत, कौशल विकास कार्यक्रम, आजीविका और उद्यम विकास कार्यक्रम (एलईडीपी), सूक्ष्म उद्यम विकास कार्यक्रम (एमईडीपी), ईशक्ति कार्यक्रम इत्यादि मुख्य रूप से शामिल हैं।

आदिवासी विकास कार्यक्रम: यह नाबार्ड द्वारा संचालित एक विशेष पहल है, जिसका उद्देश्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों का सामाजिक और आर्थिक विकास करना है।

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प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर अंब्रेला कार्यक्रम (UPNRM): यह नाबार्ड और जर्मन डेवलपमेंट बैंक की एक संयुक्त पहल है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करना, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी विकास को बढ़ावा देते हुए आजीविका के अवसरों को बढ़ाना और किसानों तथा ग्रामीण समुदायों की आय में वृद्धि करना है।

नाबार्ड की मार्केटिंग पहल: नाबार्ड ग्रामीण शिल्पकारों एवं उत्पादकों को मार्केटिंग अवसर उपलब्ध कराने के लिये देश भर में आयोजित होने वाली प्रदर्शनियों में उनकी भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में काम करता है।

नाबार्ड (NABARD) को सौंपे गए कार्यों में इसके पर्यवेक्षी कार्य भी शामिल हैं। बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 के तहत नाबार्ड सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) के पर्यवेक्षक के रूप में काम करता है।

नाबार्ड यह सुनिश्चित करता है कि वाणिज्यिक, सहकारी और ग्रामीण बैंकों द्वारा किसानों को दिए जा रहे कृषि ऋण सही ढंग से वितरित किए जा रहे हैं।

इसके अलावा यह ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे विकास कार्यों की निगरानी का काम भी करता है। यह सहकारी बैंकों को लाइसेंस देने तथा इनके नियमन जैसे विषयों पर भारतीय रिजर्व बैंक को प्रस्ताव देता है। नाबार्ड के द्वारा किए गए निरीक्षण और समीक्षा के आधार पर आरबीआई इन बैंकों के लिए निर्देश जारी करता है।

सार-संक्षेप

नाबार्ड (NABARD) का पूरा नाम नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट है, जिसे हिन्दी में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक कहा जाता है। इसकी शुरुआत सन् 1982 में हुई, नाबार्ड (NABARD) को शुरू करने के पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादकता एवं ग्रामीण विकास से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देना था।

इसकी स्थापना तीन अलग-अलग संस्थाओं एग्रीकल्चर क्रेडिट डिपार्टमेंट (ACD), कृषि पुनर्वित्त एवं विकास कॉरपोरेशन (ARDC) और रूरल प्लानिंग एंड क्रेडिट सेल (RPCC) को मिलाकर की गई, जो पहले रिजर्व बैंक (आरबीआई) के तहत आते थे। नाबार्ड के कार्य मुख्यतः तीन क्षेत्रों में केंद्रित हैं, जिनमें वित्तीय, विकसात्मक एवं पर्यवेक्षी कार्य शामिल हैं।