Monday, December 2, 2024

अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है?

किसी भी देश द्वारा अपने नागरिकों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए देश में मौजूद संसाधनों का एक बेहतरीन प्लानिंग के तहत इस्तेमाल कर धन को केंद्र में रखते हुए बनाई गई व्यवस्था को "अर्थव्यवस्था" कहा जाता है।

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किसी भी देश द्वारा अपने नागरिकों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए देश में मौजूद संसाधनों का एक बेहतरीन प्लानिंग के तहत इस्तेमाल कर पैसे को केंद्र में रखते हुए बनाई गई व्यवस्था को “अर्थव्यवस्था” कहा जाता है। चूँकि अर्थव्यवस्था शब्द आर्थिक क्रियाओं को प्रदर्शित करता है अतः इसका इस्तेमाल हमेशा किसी भू-भाग, सामान्यतः देश के साथ किया जाता है।

आइए इस लेख के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर अर्थव्यवस्था क्या है, इसके कितने प्रकार हैं, मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या होती है, किसी अर्थव्यवस्था में आर्थिक संकेतक क्या होते हैं, भारत किस प्रकार की अर्थव्यवस्था है तथा अर्थव्यवस्था एवं अर्थशास्त्र के बीच क्या प्रमुख अंतर होता है?

अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं?

हमारी ऐसी सभी गतिविधियाँ, जिनमें पैसा किसी न किसी रूप में सम्मिलित होती है, उसका अध्ययन अर्थशास्त्र कहलाता है और अर्थशास्त्र के ही क्रियाशील स्वरूप को अर्थव्यवस्था या इकोनॉमी कहते हैं।

अर्थव्यवस्था किसी भी देश में होने वाली समस्त आर्थिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था होती है, जिसमें संसाधनों का वितरण इस प्रकार किया जाता है कि अधिकतम नागरिकों का कल्याण किया जा सके। इस पूरी व्यवस्था में पैसा केंद्रीय भूमिका में होता है।

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सरल शब्दों में कहें तो अर्थव्यवस्था किसी भी भू-भाग में होने वाले उत्पादों या सेवाओं के उत्पादन, उपभोग, आयात, निर्यात तथा व्यापार आदि को प्रदर्शित करती है। वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, उपभोग और वितरण तीनों मिलकर किसी अर्थव्यवस्था में रहने और उसका संचालन करने वालों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं।

अर्थव्यवस्था किसी परिवार, कंपनी, देश अथवा भू-भाग की हो सकती है। अर्थव्यवस्था शब्द का इस्तेमाल मुख्य रूप से किसी देश के साथ ही किया जाता है जैसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था, भारतीय अर्थव्यवस्था इत्यादि।

अर्थव्यवस्था के प्रकार

अर्थव्यवस्था क्या है, जानने के बाद अब नजर डालते हैं इसके विभिन्न प्रकारों पर, अर्थव्यवस्था के प्रकारों की बात करें तो इसका वर्गीकरण संसाधनों के स्वामित्व के आधर पर, अंतः संबंधों के आधार पर और विकास की स्थिति के आधार पर तीन अलग-अलग तरीके से किया जाता है। इस लेख में आगे हम इन सभी प्रकारों को विस्तार से समझेंगे।

#1 संसाधनों के स्वामित्व के आधर पर

किसी क्षेत्र की आर्थिक क्रियाओं में भाग लेने वाले संसाधनों के स्वामित्व के आधार पर अर्थव्यवस्था को तीन प्रकार से समझा जा सकता है।

  • समाजवादी अर्थव्यवस्था
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था

#1.1 समाजवादी अर्थव्यवस्था

ऐसी अर्थव्यवस्था, जहाँ सभी आर्थिक क्रियाओं को सरकार संचालित करती है अर्थात उन पर निजी व्यक्तियों या कंपनियों के बजाय सरकार का नियंत्रण होता है, समाजवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में उत्पादों का उत्पादन, उनकी आपूर्ति तथा कीमतों का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है।

समाजवादी अर्थव्यवस्था का उद्देश्य समाज के सभी सदस्यों के बीच संसाधनों का समान वितरण करना होता है। चूँकि इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में माँग एवं आपूर्ति का सिद्धांत लागू नहीं होता अतः बाज़ार में प्रतिस्पर्धा का अभाव होता है।

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समाजवादी अर्थव्यवस्था की एक मुख्य विशेषता यह है कि, इसमें किसी वस्तु अथवा सेवा का उत्पादन उसके उपयोग या समाज की जरूरतों के आधार पर किया जाता है, लिहाजा ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में किसी उत्पाद का उत्पादन सीमित होता है। यह व्यवस्था पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली से पूरी तरह से अलग है, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से किया जाता है।

#1.2 पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

ऐसी अर्थव्यवस्था, जिसमें किसी भू-भाग की समस्त आर्थिक क्रियाएं निजी क्षेत्र द्वारा संचालित की जाती हैं पूँजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है। इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता, चूँकि ऐसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन, आपूर्ति आदि निजी क्षेत्र के हाथों में होती है अतः इसमें प्रतिस्पर्धा होती है तथा कीमतों का निर्धारण बाजार द्वारा किया जाता है। इस अर्थव्यवस्था में माँग एवं आपूर्ति के नियम का पालन होता है।

एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की पूंजीगत संपत्तियाँ जैसे कारखाने, खदानें, रेलमार्ग इत्यादि निजी क्षेत्र के स्वामित्व और नियंत्रित में होते हैं और पूंजीगत लाभ भी संपत्तियों के निजी मालिकों को प्राप्त होता है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं के कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • अमेरिका
  • जर्मनी
  • जापान
  • सिंगापुर
  • यूनाइटेड किंगडम

#1.3 मिश्रित अर्थव्यवस्था

ऐसी अर्थव्यवस्था, जिसमें समाजवादी एवं पूंजीवादी दोनों अर्थव्यवस्थाओं का मिश्रण होता है, मिश्रित अर्थव्यवस्था कहलाती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में सरकार नियामक की भूमिका निभाती है। यहाँ निजी क्षेत्र को उत्पादन की स्वतंत्रता होती है, लिहाजा माँग एवं आपूर्ति का नियम लागू होता है तथा बाजार में प्रतिस्पर्धा भी बनी रहती है। भारत समेत अधिकतर देश मिश्रित अर्थव्यवस्था के ही उदाहरण हैं।

समाजवादी, पूँजीवादी एवं मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं की विशेषताएं

समाजवादी, पूंजीवादी और मिश्रित अर्थव्यवस्थाएं निम्नलिखित तरीके से एक दूसरे से भिन्न होती हैं-

विषयवस्तुसमाजवादी अर्थव्यवस्थापूंजीवादी अर्थव्यवस्थामिश्रित अर्थव्यवस्था
उत्पादन के साधनसाधनों पर सामूहिक रूप से समाज का स्वामित्व होता हैनिजी क्षेत्र का स्वामित्व होता हैनिजी क्षेत्र एवं सरकार दोनों का स्वामित्व होता है
उत्पादों की कीमतेंवस्तु एवं सेवाओं की कीमतें बाजार के विपरीत सरकारों द्वारा तय करी जाती हैंबाजार द्वारा मांग एवं आपूर्ति के अनुसार तय होती हैंबाजार एवं सरकार दोनों की भूमिका होती है
प्रतिस्पर्धा (Competition)बाजार में किसी प्रकार की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती हैउत्पादन में प्रतिस्पर्धा होती हैसमाजवादी अर्थव्यवस्था से अधिक एवं पूंजीवादी से कम
संसाधनों का वितरणराज्य के संसाधनों का समाज में समान रूप से वितरण किया जाता हैसंसाधनों का असामान वितरणसमाजवाद की तुलना में संसाधनों का आसमान वितरण

#2 अंतः संबंधों के आधार पर

अंतः संबंधों के आधार पर किसी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं।

  • खुली अर्थव्यवस्था
  • बंद अर्थव्यवस्था

#2.1 खुली अर्थव्यवस्था

इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में दो देशों के मध्य संसाधनों के मुक्त आवागमन की नीति का पालन होता है अर्थात वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात और निर्यात किया जाता है। चूँकि कोई भी देश स्वयं अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता अतः लगभग सभी देश इसी श्रेणी में आते हैं।

#2.2 बंद अर्थव्यवस्था

खुली अर्थव्यवस्था के विपरीत बंद अर्थव्यवस्था में किसी देश का अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से कोई संबंध नहीं होता। सरल शब्दों में कहें तो किसी अन्य देश से किसी भी प्रकार का आयात-निर्यात नहीं किया जाता।

#3 विकास की स्थिति के आधार पर

किसी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का आंकलन विकास के आधार पर भी किया जाता है। इस आधार पर अर्थव्यवस्थाएं तीन प्रकार की होती हैं।

  • विकसित अर्थव्यवस्था
  • अल्पविकसित अर्थव्यवस्था
  • विकासशील अर्थव्यवस्था

#3.1 अल्प विकसित अर्थव्यवस्था

ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ आर्थिक विकास निम्नतम स्तर पर होता है तथा लोगों के रहन-सहन का स्तर काफी नीचा होता है अल्पविकसित अर्थव्यवस्था कहलाती है। यहाँ लोगों की प्रतिव्यक्ति आय काफी कम होती है, गरीबी तथा बेरोजगारी की दर उच्च होती है तथा आधारभूत संरचना का अभाव होता है। उदाहरण की बात करें तो सोमालिया, बुरुंडी, चाड आदि देश ऐसी अर्थव्यवस्था के उदाहरण हैं।

#3.2 विकासशील अर्थव्यवस्था

वे अर्थव्यवस्थाएं जहाँ आर्थिक विकास अल्पविकसित देशों की तुलना में अधिक होता है अर्थात जहाँ आर्थिक संवर्द्धि के उच्च स्तर को प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है, विकासशील अर्थव्यवस्था कहलाती हैं। ऐसी अर्थव्यवस्था वाले देशों में लोगों की प्रति व्यक्ति आय अंतराष्ट्रीय मानकों से कम होती है, देश में आधारभूत संरचना या इंफ्रास्ट्रक्चर विकासशील अवस्था में होता है तथा आधुनिक तकनीकों का अभाव होता है। भारत ऐसी अर्थव्यवस्था का एक उदाहरण है।

#3.3 विकसित अर्थव्यवस्था

ऐसे देश जहाँ आर्थिक विकास का स्तर उच्च होता है तथा उपस्थित संसाधनों का अधिकतम दोहन किया जाता है, उन देशों की अर्थव्यवस्था, विकसित अर्थव्यवस्था कहलाती हैं। ऐसी अर्थव्यवस्था में लोगों की प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है, ये देश तकनीकी दृष्टि से अग्रणी होते हैं तथा यहाँ उच्च कोटि की आधारभूत संरचना उपलब्ध होती है।

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प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो विश्व बैंक के अनुसार ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ कुल प्रति व्यक्ति आय 12,236 डॉलर या इससे अधिक है, तो ऐसी अर्थव्यवस्था को विकसित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। अमेरिका, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड आदि देश इसके उदाहरण हैं।

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र

अभी तक आपने अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं (Arthvyavastha Kise Kahate hain) तथा अर्थव्यवस्था के कितने प्रकार हैं इसको समझा, आइये अब जानते हैं अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को। मुख्य रूप से किसी अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रों में रखा जाता है।

  • प्राथमिक क्षेत्र
  • द्वितीयक क्षेत्र
  • तृतीयक क्षेत्र

#1 प्राथमिक क्षेत्र

ऐसा क्षेत्र, जिसमें उत्पाद के रूप में प्राकृतिक संसाधनों को उपयोग में लिया जाता है, प्राथमिक क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र में मुख्यतः कच्चे माल का उत्पादन किया जाता है जिनमें खनन, मत्स्य पालन, कृषि अथवा उससे संबंधित उत्पादन शामिल हैं। भारत की बात करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का योगदान सबसे कम है।

Arthvyavastha kise kahate Hain
प्राथमिक क्षेत्र

#2 द्वितीयक क्षेत्र

इस क्षेत्र में प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्त कच्चे माल का प्रयोग कर मशीनों की सहायता से उत्पादों का उत्पादन किया जाता है। इसे एक उदाहरण की सहायता से समझा जा सकता है, किसी किसान द्वारा किया गया आलू का उत्पादन प्राथमिक क्षेत्र का हिस्सा है, जबकि उस आलू को कच्चे माल की तरह उपयोग कर उससे चिप्स बनाकर उन्हें बाजार में बेचना द्वितीयक क्षेत्र का उदाहरण है। किसी भी अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

Arthvyavastha kise kahate Hain
द्वितीयक क्षेत्र

#3 तृतीयक क्षेत्र

इस क्षेत्र में मुख्यतः विभिन्न प्रकार की सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। ये क्षेत्र प्राथमिक तथा द्वितीयक क्षेत्रों को अपनी सेवाएं प्रदान करता है अतः इसे सेवा क्षेत्र या सर्विस सेक्टर भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से व्यापार, होटल, रेस्टोरेंट, परिवहन तथा संचार आदि सेवाएं शामिल हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का अधिक योगदान है।

Arthvyavastha kise kahate Hain
सेवा क्षेत्र

#4 अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र

जैसा कि, हमनें ऊपर बताया मुख्य रूप से अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्र हैं, किन्तु प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों के अलावा अर्थव्यवस्था के दो अन्य क्षेत्र भी हैं, जो निम्नलिखित हैं।

चतुष्क क्षेत्र

किसी अर्थव्यवस्था में होने वाली शिक्षा, खोज एवं अनुसंधान को अर्थव्यवस्था के चतुष्क क्षेत्र में शामिल किया जाता है। अर्थव्यवस्था के इस क्षेत्र को “ज्ञान क्षेत्रक” भी कहा जाता है, यह क्षेत्र मुख्य रूप से मानव संसाधन की गुणवत्ता का आधार है।

पंचम क्षेत्र

अर्थव्यवस्था के इस क्षेत्र में उसके शीर्ष निर्णयों से जुड़ी गतिविधियों को शामिल किया जाता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत सरकारों तथा निजी क्षेत्र के नीति निर्णायक लोग आते हैं, चूंकि इस क्षेत्र में किसी अर्थव्यवस्था के शीर्ष लोग शामिल होते हैं अतः इसे अर्थव्यवस्था के सामाजिक-आर्थिक निष्पादन का मस्तिष्क माना जाता है।

Economic Indicators या आर्थिक संकेतक क्या होते हैं?

आर्थिक संकेतक अथवा Economic Indicator एक मीट्रिक (मापन-प्रणाली) है, जिसका उपयोग किसी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य की समग्र स्थिति का आकलन और मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। आर्थिक संकेतक अक्सर किसी सरकारी एजेंसी या निजी संगठन द्वारा जनगणना या सर्वेक्षण के रूप में एकत्र किए जाते हैं। कुछ महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक निम्नलिखित हैं

सकल घरेलू उत्पाद (GDP): सकल घरेलू उत्पाद या GDP एक वर्ष की अवधि के दौरान किसी अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य होता है। सकल घरेलू उत्पाद को आर्थिक प्रदर्शन के प्राथमिक संकेतक के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। जीडीपी किसी अर्थव्यवस्था के समग्र आकार को दर्शाता है, जबकि जीडीपी में परिवर्तन उस अर्थव्यवस्था के समग्र स्वास्थ्य को दर्शाता है।

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बेरोजगारी दर (Unemployment): बेरोजगारी दर भी किसी अर्थव्यवस्था के संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भारत में National Sample Survey Organization (NSSO) रोजगार एवं बेरोजगारी से जुड़े आँकड़े तथा उससे संबंधित जानकारी एकत्र, संकलित और प्रकाशित करता है।

महंगाई (Inflation): किसी समयावधि में वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में सामान्य से अधिक वृद्धि होने को महंगाई या Inflation कहा जाता है, किसी अर्थव्यवस्था में महंगाई दर को भी अर्थव्यवस्था के संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

व्यापार संतुलन (Balance of Trade): किसी अर्थव्यवस्था का व्यापार संतुलन देश में वस्तुओं और सेवाओं के आयात पर खर्च की जाने वाली धनराशि तथा देश से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर अर्जित धनराशि की तुलना है। Balance of Trade एक अहम संकेतक है जिससे किसी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य की स्थिति का आँकलन किया जा सकता है।

अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था में अंतर

अर्थशास्त्र एक विस्तृत विषय है, जिसके अंतर्गत समाज तथा सरकारों द्वारा सीमित संसाधनों का प्रयोग कर अपनी आवश्यकताओं की किस प्रकार पूर्ति की जाए इसका अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह एक सैद्धान्तिक विषय है, जिसके सिद्धान्तों या नियमों का प्रयोग नागरिकों के अधिकतम कल्याण के लिए किया जाता है। किंतु इन सिद्धांतों का प्रायोगिक रूप अर्थव्यवस्था कहलाती है।

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