किन्हीं दो देशों के बीच अच्छे या खराब रिश्तों को उनके मध्य होने वाले द्विपक्षीय व्यापार (Trade) के जरिए अच्छे से समझा जा सकता है, जहाँ दो देशों के बीच अच्छे संबंध फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) जैसे समझौतों को जन्म देते हैं वहीं खराब रिश्ते ट्रेड वॉर जैसी स्थिति को उत्पन्न करते हैं।
फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के संबंध में आप यहाँ दी गई लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं, आज के इस लेख में चर्चा करेंगे किन्हीं दो देशों के बीच व्यापार युद्ध या ट्रेड वॉर (Trade War) की, जानेंगे ट्रेड वॉर क्या होती है, कैसे शुरू होती है और इसका किसी देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है।
ट्रेड वॉर क्या है?
व्यापार युद्ध या ट्रेड वॉर सामान्यतः किन्हीं दो देशों के बीच आर्थिक संघर्ष की एक स्थिति है, जिसमें दोनों देशों के मध्य व्यापारिक तनाव बढ़ जाता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब एक देश दूसरे देश के खिलाफ व्यापारिक बाधाओं (Trade Barriers) का इस्तेमाल करता है।
इन व्यापारिक बाधाओं या ट्रेड बैरियर्स के अंतर्गत टैरिफ दरों में वृद्धि, व्यापार कोटा में कमी, घरेलू उत्पादकों को सब्सिडी, मुद्रा का अवमूल्यन, किसी अन्य प्रकार की व्यापार संरक्षणवादी नीति को लागू करना तथा व्यापार पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाना शामिल हैं।
जब एक देश किसी दूसरे देश से होने वाले व्यापार पर किसी प्रकार के बैरियर / प्रतिबंधों का इस्तेमाल करता है तो इसके जवाब में दूसरा देश भी इसी प्रकार की कार्यवाही करता है और इससे एक युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
ट्रेड वॉर के क्या कारण हो सकते हैं?
किन्हीं दो देशों के बीच ट्रेड वॉर की स्थिति कई कारणों से उत्पन्न हो सकती है, जिनमें राजनीतिक कारण, वाणिज्यिक असंतुलन, आर्थिक राष्ट्रवाद इत्यादि मुख्य रूप से शामिल हैं।
#1 राजनीतिक कारण: किन्हीं दो देशों के मध्य राजनीतिक तनाव की स्थिति उनके व्यापार को भी प्रभावित कर सकती है। हाल के वर्षों में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध इसका एक प्रमुख उदाहरण है। यह युद्ध कई राजनीतिक तनावों का परिणाम था जिनमें जासूसी, राष्ट्रीय सुरक्षा तथा मुद्रा अवमूल्यन जैसे मुद्दे शामिल हैं।
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#2 वाणिज्यि असंतुलन: वाणिज्यि असंतुलन अर्थात ऐसी स्थति जब किसी एक देश का आयात उसके निर्यात से कहीं अधिक हो जाए इस स्थित में व्यपार को संतुलित करने के लिए भी कई बार देश ट्रेड बैरियर का इस्तेमाल करते हैं ताकि आयात को कम किया जा सके।
#3 आर्थिक राष्ट्रवाद: अपनी अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए भी देश ट्रेड बैरियर का इस्तेमाल कर सकते हैं जो अंततः ट्रेड वॉर की स्थिति ले सकता है। आर्थिक राष्ट्रवाद के तहत घरेलू उद्योगों, उत्पादकों को संरक्षण प्रदान किया जाता है।
ट्रेड वॉर का किसी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
ट्रेड वॉर का लॉन्ग टर्म में किसी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर ही पड़ता है। हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि कोई देश किसी अन्य देश के व्यापर पर कितना अधिक निर्भर है, यदि यह निर्भरता अधिक हो तो ट्रेड वॉर के परिणाम गंभीर हो सकते हैं। ट्रेड वॉर के किसी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले कुछ मुख्य परिणामों निम्नलिखित हैं
#1 घरेलू उद्योगों पर प्रभाव
ट्रेड वॉर का घरेलू उद्योगों पर मिला-जुला असर होता है ऐसे उद्योग जो विदेशी कच्चे माल पर निर्भर नहीं हैं उन्हें इससे कुछ हद तक फायदा होता है क्योंकि अब उन्हें विदेशी प्रस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता।
इसके अलावा कुछ अन्य घरेलू उद्योग जो कच्चे माल के लिए दूसरे देश पर निर्भर हैं उन्हें ट्रेड वॉर से खासा नुकसान हो सकता है तथा किसी अन्य देश से कच्चा माल आयात करने के चलते उनकी कुल उत्पादन लागत में भी वृद्धि हो सकती है।
#2 उपभोक्ताओं पर प्रभाव
उपभोक्ताओं के लिहाज से व्यापार युद्ध या ट्रेड वॉर की स्थिति नुकसानदायक ही होती है। इससे उन्हें दोतरफा नुकसान होता है, पहला घरेलू उद्योगों की उत्पादन लागत में वृद्धि के चलते महंगाई बढ़ती हैं और दूसरा उन्हें पहले की तुलना में उत्पादों के सीमित विकल्प खरीदने को मिलते हैं।
#3 अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
जैसा कि हमनें पूर्व में भी बताया एक लंबी अवधि में ट्रेड वॉर का किसी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर ही पड़ता है। विदेशी उद्योगों के बाजार से चले जाने पर उत्पादों की कीमत बढ़ जाती है और देश में आर्थिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं, जिससे उसकी जीडीपी और आर्थिक विकास दोनों नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।
ट्रेड वॉर के फायदे और नुकसान
अर्थशास्त्रियों के अनुसार व्यापार युद्ध (Trade War) लंबी अवधि में किसी अर्थव्यवस्था को नुकसान ही पहुंचता है, किन्तु कुछ संरक्षणवादी इसे घरेलू उद्योगों के लिए अच्छा समझते हैं।
उनके अनुसार अच्छी तरह से तैयार की गई नीतियाँ प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करती हैं, जिससे घरेलू उत्पादकों को अधिक व्यवसाय मिलता है और अंततः अधिक रोजगार पैदा होता है। आइए व्यापार युद्ध या ट्रेड वॉर के कुछ सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं को जानते हैं
सकारात्मक पहलू | नकारात्मक पहलू |
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व्यापार युद्ध घरेलू कंपनियों को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाता है | लागत बढ़ने से उत्पादों की कीमतों में वृद्धि होती है |
घरेलू उत्पादों की माँग अथवा उपभोग को बढ़ाता है | व्यापार युद्ध उत्पादों के विकल्पों को सीमित करता है |
ट्रेड वॉर के चलते स्थानीय रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है | देश की जीडीपी ग्रोथ और आर्थिक विकास को धीमा करता है |
यह किसी देश के व्यापार घाटे (Trade Deficit) को कम करता है | निर्यातकों को ट्रेड वॉर के चलते खासा नुकसान उठाना पड़ता है |
अनैतिक व्यापार नीतियों को अपनाने वाले देशों को दंडित करता है | डिप्लोमैटिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को बुरी तरह प्रभावित करता है |
ट्रेड वॉर के उदाहरण
ट्रेड वॉर के हालिया उदाहरणों में अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध महत्वपूर्ण है, जो डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद 2018 में शुरू हुआ और अभी भी कुछ हद तक जारी है।
2018 में अमेरिका ने चीनी समान पर 25% तक टैरिफ बढ़ाने की घोषणा करी, जिसका उद्देश्य बौद्धिक संपदा चोरी को रोकना, व्यापार में असंतुलन को कम करना था। गौरतलब है कि, उस समय दोनों देशों के बीच ये व्यापार असंतुलन लगभग 350 अरब डॉलर का था।
अमेरिका की कार्यवाही के बाद चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाए, साल 2020 में, अमेरिका और चीन ने "फेज़ वन" व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के व्यापार तनाव में कुछ हद तक कमी आई है हालांकि अधिकांश उच्च टैरिफ अभी भी बने हैं।
सार-संक्षेप
संरक्षणवादी नीति, खराब राजनीतिक संबंधों या किसी अन्य कारण के चलते जब एक देश दूसरे देश से आयात होने वाले उत्पादों पर अधिक उत्पाद शुल्क (Tariff) लगाता है या आयात पर आंशिक अथवा पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाता है तो इससे दोनों देशों के बीच व्यापार हतोत्साहित होता है और आर्थिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसे व्यापार युद्ध कहा जाता है।