आगामी यूनियन बजट में केंद्र सरकार फ्यूचर एंड ऑप्शंस ट्रेडिंग (F&O Trading) से होने वाले मुनाफे पर लगने वाले टैक्स को बढ़ा सकती है, ऐसा करने के पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य रिटेल अथवा छोटे निवेशकों की फ्यूचर एंड ऑप्शंस ट्रेडिंग से दिलचस्पी को कम करना है।
सरकार, रिजर्व बैंक एवं बाजार नियामक सेबी F&O सेगमेंट में रिटेल निवेशकों की बढ़ती संख्या को लेकर कई बार अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। रातों-रात अमीर बनने के सपने देखने वाले निवेशक खासकर नये निवेशक यहाँ खूब पैसे गंवा रहे हैं, कई स्थितियों में निवेशक पर्सनल लोन लेकर भी ट्रेडिंग कर रहे हैं और नुकसान उठा रहे हैं।
किसी स्टॉक में निवेश करने के विपरीत डेरिवेटिव ट्रेडिंग में ब्रोकरेज फर्म लेवरेज या उधार उपलब्ध करवाती हैं, जो निवेशक के पास उपलब्ध पूँजी का 20 गुना तक हो सकता है। कम कैपिटल वाले नये निवेशक ब्रोकरेज फर्म की इस सेवा के चलते ट्रेडिंग की ओर खासा आकर्षित होते हैं और अंततः नुकसान उठाते हैं। मार्केट नियामक सेबी के अनुसार F&O ट्रेडिंग करने वाले तकरीबन 10 में से 9 निवेशक अपना पैसा गंवाते हैं।
टैक्स में संभावित बदलाव
F&O सेगमेंट में रिटेल निवेशकों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार आगामी बजट में डेरिवेटिव ट्रेडिंग से हुई कमाई पर टैक्स बढ़ा सकती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार डेरिवेटिव ट्रेडिंग से हुए मुनाफे को ‘बिजनेस इनकम’ के बजाए ‘स्पेक्युलेटिव इनकम’ की श्रेणी में शामिल कर सकती है, जिसके बाद इसे लॉटरी या क्रिप्टोकरेंसी से हुई इनकम के समान समझा जाएगा और टैक्स की वसूली TDS (Tax Deducted at Source) के माध्यम से करी जाएगी।
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डेरिवेटिव ट्रेडिंग के मुनाफे पर टैक्स बढ़ाने से जहाँ रिटेल निवेशकों की दिलचस्पी में कमी आएगी वही सरकार की कमाई भी पहले की तुलना में अब अधिक होगी।
F&O की कमाई पर वर्तमान में टैक्स
फ्यूचर एंड ऑप्शंस (F&O) ट्रेडिंग से होने वाले लाभ को भी किसी व्यक्ति की आय (Non-Speculative Income) में शामिल किया जाता है तथा उस पर इनकम टैक्स की दरों के अनुसार टैक्स चुकाना होता है। इसके साथ ही यहाँ हुई हानि को भी निवेशक अगले आठ वर्षों तक की आय में समायोजित कर सकते हैं।
F&O अथवा डेरिवेटिव ट्रेडिंग क्या है?
फ्यूचर एंड ऑप्शंस दो मुख्य डेरिवेटिव इन्स्ट्रूमेंट्स हैं, जो स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड किये जाते हैं। डेरिवेटिव ऐसे फाइनेंशियल इन्स्ट्रूमेंट्स होते हैं, जिनका अपना कोई मूल्य नहीं होता बल्कि ये अपनी कीमत उसमें अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Asset) जैसे किसी कमोडिटी, स्टॉक, बॉन्ड, करेंसी आदि से प्राप्त करते हैं।
किसी स्टॉक की भांति डेरिवेटिव उत्पादों में भी निवेश किया जाता है और इनमें फ्यूचर एंड ऑप्शंस प्रमुख हैं। इन अनुबंधों या कॉन्ट्रेक्ट्स में भविष्य की किसी तारीख को पहले से निर्धारित मूल्य पर किसी एसेट का व्यापार किया जाता है। इस तरह के अनुबंध भविष्य में किसी प्रकार के बाजार जोखिम से बचाव करने के लिए किये जाते हैं।