अगर आप शेयर बाजार में रुचि रखते हैं तो आपने IPO (Initial Public Offerings) के बारे में जरूर सुना होगा, जब भी कोई कंपनी पहली बार अपनी हिस्सेदारी पब्लिक में बेचने का निर्णय लेती है तो इस प्रक्रिया को आईपीओ या इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग कहा जाता है।
आए दिन अलग-अलग कंपनियाँ पैसे इकट्ठा करने के लिए अपना आईपीओ लेकर आती रहती हैं, किसी आईपीओ के संबंध में एक अन्य शब्द ग्रे मार्केट प्रीमियम (Gray Market Premium) भी खासा चर्चाओं में रहता है। आज इस लेख में विस्तार से बात करेंगे ग्रे मार्केट और ग्रे मार्केट प्रीमियम की, जानेंगे ग्रे मार्केट क्या होता है, ग्रे मार्केट में शेयर कैसे खरीदे और बेचे जाते हैं, ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) क्या होता है तथा ग्रे मार्केट प्रीमियम की गणना कैसे करी जाती है?
ग्रे मार्केट क्या होता है?
आप जानते हैं शेयर बाजार में विभिन्न छोटी-बड़ी कंपनियों के स्टॉक्स को खरीदा या बेचा जाता है और स्टॉक्स की ये ट्रेडिंग स्टॉक मार्केट के नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की निगरानी में होती है। स्टॉक मार्केट के विपरीत ग्रे मार्केट एक ऐसा अनौपचारिक (Unofficial) और अनियमित (Irregular) बाजार है जहाँ शेयरों का लेन-देन बिना किसी नियामक (Regulator) की मध्यस्थता के किया जाता है।
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ग्रे मार्केट में अधिकांशतः ऐसी कंपनियों के शेयर ट्रेड किये जाते हैं जो अभी तक शेयर बाजार में लिस्ट नहीं हुई हैं, यहाँ स्टॉक्स का लेन-देन व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। हालांकि ग्रे मार्केट Unofficial तथा Irregular अवश्य है किन्तु यह अवैध नहीं है और इसका एक प्रमुख उदाहरण Employee Stock Ownership Plan (ESOP) है।
कई कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को कंपनी में एक छोटी सी हिस्सेदारी प्रदान करती हैं जिसे ESOP कहा जाता है। यदि ऐसी कोई कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट नहीं हुई है और उसका कोई कर्मचारी अपने हिस्से के शेयर किसी अन्य व्यक्ति को बेच दे तो यह लेन-देन ग्रे मार्केट में शामिल किया जाएगा, हालांकि इस ट्रांजेक्शन में कोई नियामक बीच में मौजूद नहीं होगा किन्तु इसे अवैध नहीं कहा जाएगा।
ग्रे मार्केट प्रीमियम क्या होता है?
यदि आपने कभी किसी कंपनी के IPO के लिए आवेदन किया है तो आपने कंपनी के ग्रे मार्केट प्रीमियम (Grey Market Premium) के बारे में अवश्य सुना होगा आइए जानते हैं यह क्या होता है, कोई भी कंपनी जब अपना आईपीओ लेकर आती है तो इश्यू प्राइज की घोषणा करती है, इश्यू प्राइज वह कीमत है जिस पर कंपनी ने अपने एक शेयर को बेचने का फैसला लिया है।
ग्रे मार्केट में इश्यू प्राइज से ऊपर कंपनी के शेयरों की जो भी कीमत लगाई जाती है उसे ग्रे मार्केट प्रीमियम या GMP कहा जाता है। दूसरे शब्दों में ग्रे मार्केट प्रीमियम, ग्रे मार्केट में शेयरों के अनौपचारिक बाजार मूल्य और कंपनी द्वारा आईपीओ के दौरान निर्धारित निर्गम मूल्य (Issue Price) के बीच का अंतर है।
उदाहरण के लिए किसी कंपनी के आईपीओ का इश्यू प्राइज 100 रुपये है तथा ग्रे मार्केट में कंपनी के शेयर 190 रुपये पर ट्रेड कर रहे हों तो कंपनी का ग्रे मार्केट प्रीमियम 90% होगा। ग्रे मार्केट प्रीमियम निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण पैमाना है जो बाजार की भावना, मांग और संभावित रिटर्न के संबंध में जानकारी प्रदान करता है।
ग्रे मार्केट प्रीमियम की गणना कैसे करी जाती है?
ग्रे मार्केट प्रीमियम की गणना कैसे करी जाती है? इससे पहले ग्रे मार्केट प्रीमियम और ग्रे मार्केट प्राइज के बीच अंतर समझना जरूरी है। ग्रे मार्केट प्राइज वह कीमत होती है जिस कीमत पर ग्रे मार्केट में किसी कंपनी के शेयर ट्रेड हो रहे हों वहीं ग्रे मार्केट प्रीमियम इश्यू प्राइज के अतिरक्त वह कीमत है जिसे ट्रेडर देने को तैयार है, ऊपर दिए गए उदाहरण में ग्रे मार्केट प्राइज 190 रुपये है वहीं ग्रे मार्केट प्रीमियम 90 रुपये अथवा 90 फीसदी है।
ग्रे मार्केट प्रीमियम की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का इस्तेमाल किया जाता है-
ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) से क्या पता चलता है?
ग्रे मार्केट प्रीमियम या GMP से किसी कंपनी के प्रति बाजार के सेंटीमेंट का अंदाजा लगाया जा सकता है। ग्रे मार्केट प्रीमियम आने वाले आईपीओ के संबंध में बाजार की उम्मीदों और भावनाओं के संकेतक के रूप में भी कार्य करता है। अधिक Gray Market Premium (GMP) को अक्सर एक सकारात्मक संकेत के रूप में समझा जाता है, जो कंपनी में निवेशकों की मजबूत रुचि और विश्वास को दर्शाता है।
निवेशक किसी IPO में निवेश करने से पूर्व कई महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखते हैं और कंपनी का ग्रे मार्केट प्रीमियम भी इनमें से ही एक है, बढ़ा हुआ प्रीमियम सामान्य की तुलना में अधिक रिटेल निवेशकों को आकर्षित करता है, जबकि संस्थागत निवेशक भी आईपीओ की मांग का अंदाजा लगाने के लिए GMP को एक कारक के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
इसके साथ ही कंपनियां और इनवेस्टमेंट बैंकर भी कभी-कभी आईपीओ मूल्य या इश्यू प्राइज का निर्धारण करने के लिए ग्रे मार्केट प्रीमियम का इस्तेमाल करते हैं। यदि ग्रे मार्केट में प्रीमियम अनुमान से अधिक रहता है तो कंपनी अपने आईपीओ मूल्य में भी संशोधन करती है।
ग्रे मार्केट में शेयर कैसे खरीदे और बेचे जाते हैं?
शेयर बाजार में स्टॉक एक्सचेंज (NSE / BSE) के माध्यम से शेयर खरीदे या बेचे जाते हैं जबकि ग्रे मार्केट में कुछ डीलर या ऑपरेटर इस काम को अंजाम देते हैं। ये ऑपरेटर Buyer एवं Seller दोनों के बीच मध्यस्थ का काम करते हैं, आइए ग्रे मार्केट में होने वाली स्टॉक्स की खरीद-फरोख्त को विस्तार से समझते हैं-
किसी भी आईपीओ में निवेशकों को शेयर अलॉट होने तथा कंपनी के शेयर बाजार में लिस्ट होने के बीच लगभग 5 दिनों का समय होता है, ऐसे में यदि किसी व्यक्ति को आईपीओ में कंपनी के शेयर अलॉट हो चुके हैं किन्तु वह लिस्टिंग प्राइज का जोखिम नहीं उठना चाहता तो वह ग्रे मार्केट में अपने शेयर वर्तमान प्रीमियम पर बेच सकता है।
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इसके लिए उसे किसी ग्रे मार्केट डीलर से संपर्क करना होगा, गौरतलब है कि इस पूरी प्रक्रिया में स्टॉक्स का ट्रांसफर नहीं होता है यह कंपनी के स्टॉक मार्केट में लिस्ट होने के पश्चात किया जाता है। इसके अलावा ग्रे मार्केट में ऐसे स्टॉक्स भी ट्रेड किये जाते हैं जो अभी अलॉट नहीं हुए हैं इसके लिए आईपीओ में बोली (Bid) लगाने वाला व्यक्ति अपनी Bid को ग्रे मार्केट में उस समय चल रहे कोस्टक रेट पर बेच देता है।
ग्रे मार्केट में Kostak Rate वह कीमत होती है जो किसी आईपीओ की एक एप्लीकेशन को बेचने के बदले दी जाती है। उदाहरण के लिए यदि आपने किसी आईपीओ के लिए आवेदन किया जिसका कोस्टक रेट 500 रुपये है तो आप अपना आईपीओ आवेदन 500 रुपये में किसी Seller को बेच सकते हैं, यदि भविष्य में आपको शेयर अलॉट होते हैं तो वह शेयर आपको Seller को ट्रांसफर करने होंगे और यदि आपको शेयर अलॉट नहीं होते हैं तो उस स्थिति में भी कोस्टक कीमत आपको प्रदान की जाएगी।