पिछले कुछ वर्षों में देश का स्टार्टअप इकोसिस्टम बहुत तेज़ी से विकसित हुआ है। आंकड़ों की बात करें तो भारत सवा लाख से अधिक स्टार्टअप्स के साथ दुनियाँ में दूसरे स्थान पर है। देश में युवाओं ने उद्यमिता और नवाचार को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाने का काम किया है और इसमें सरकार की स्टार्टअप इंडिया जैसी मुहीम भी मददगार रही है।
ऐसे में जबकि देश में उद्यमिता लगातार बढ़ रही है, सभी के लिए विभिन्न प्रकार की बिजनेस संरचनाओं जैसे सोल प्रोपराइटरशिप, वन पर्सन कंपनी, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप आदि के बारे में जानना जरूरी है।
विभिन्न प्रकार की बिजनेस संरचनाओं में से एक की हम यहाँ विस्तार से करने जा रहे हैं, जिसे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (Private Limited Company) कहा जाता है। लेख में आगे समझेंगे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी क्या होती है, इसके क्या फायदे और नुकसान हैं तथा भारत में प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाने की प्रक्रिया क्या है?
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी क्या है?
मोटे तौर पर कंपनियाँ दो तरीके की होती हैं, पब्लिक कंपनी तथा प्राइवेट कंपनी। इनमें प्राइवेट कंपनियाँ वे होती हैं, जिनका संचालन निजी तौर पर होता है, यानी इनका स्वामित्व और नियंत्रण निजी व्यक्तियों या समूहों के हाथों में होता है। प्राइवेट कंपनियों के शेयर सार्वजनिक बाजार जैसे किसी स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड नहीं किये जाते हैं।
हालांकि प्राइवेट कंपनियाँ शेयर जारी करती हैं, लेकिन यह किसी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) के जरिये नहीं होता है और इनके शेयरधारकों की संख्या भी सीमित होती है। प्राइवेट कंपनियों का ही एक प्रकार प्राइवेट लिमिटेड (Pvt. Ltd.) कंपनी है। यहाँ ‘लिमिटेड’ शब्द कंपनी के शेयरधारकों की लिमिटेड लायबिलिटी को दर्शाता है।
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लिमिटेड लायबिलिटी या सीमित दायित्व का मतलब है कि, कंपनी के कर्ज या उसकी किसी भी देनदारी के लिए कंपनी के शेयरधारक निवेश की गई राशि तक ही जिम्मेदार होंगे। निवेशकों को कंपनी की देनदारियों का भुगतान अपनी व्यक्तिगत संपत्ति से नहीं करना होगा।
देश में सभी कंपनियाँ, कंपनी अधिनियम, 2013 से विनियमित होती हैं, इसके अनुसार प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में न्यूनतम दो तथा अधिकतम पंद्रह निदेशक (Directors) हो सकते हैं। साथ ही ऐसी कंपनी को शुरू करने के लिए कम से कम दो सदस्यों की आवश्यकता होती है, जो अधिकतम 200 तक हो सकती है।
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के प्रकार
लायबिलिटी के आधार पर एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी तीन प्रकार की हो सकती है। कोई उद्यमी अपने व्यवसाय के अनुसार किसी एक प्रकार को चुन सकता है।
- शेयरों द्वारा सीमित कंपनी
- गारंटी द्वारा सीमित कंपनी
- अनलिमिटेड कंपनी
शेयरों द्वारा सीमित कंपनी
इस प्रकार की कंपनियों में सदस्यों की देनदारी या उनका दायित्व केवल उनके द्वारा निवेश की गई राशि तक ही सीमित होता है। इन कंपनियों में शेयर पूंजी होती है तथा इसके शेयरधारकों को कंपनी में हिस्सेदारी और लाभांश मिलता है। ये कंपनियाँ इसके शेयरधारकों या निदेशकों से अलग एक स्वतंत्र निकाय होती हैं।
गारंटी द्वारा सीमित कंपनी
इस प्रकार की कंपनियों में सदस्यों की देनदारी उतनी ही होती है, जितना उनके द्वारा कंपनी बनाने के दौरान संस्थापना पत्र (MoA) में बताया गया है। कंपनी के सदस्य गारंटी देते हैं कि, यदि कंपनी अपनी देनदारियाँ नहीं चुका पाती और इसे बंद करने की नौमत आती है, तो वे एक निश्चित राशि का भुगतान निजी रूप से करेंगे।
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गारंटी द्वारा सीमित कंपनियों में कोई शेयर पूंजी नहीं होती लिहाजा इसके सदस्य कंपनी में शेयरधारक भी नहीं होते। इन्हें कंपनी या उसके मुनाफे में कोई हिस्सा नहीं मिलता है। इस प्रकार की कंपनियां विशेष रूप से गैर-लाभकारी संगठनों के रूप में काम करती हैं, जहाँ उनका लक्ष्य समाज की सेवा या किसी उद्देश्य को पूरा करना होता है।
अनलिमिटेड कंपनी
ये ऐसी कंपनियाँ हैं, जिनमें शेयरधारकों का दायित्व असीमित होता है, यहाँ सदस्यों की देयता कंपनी की कुल देनदारियों तक होती है। इस प्रकार की कोई कंपनी यदि अपनी देनदारियों जैसे कर्ज इत्यादि को चुकाने में नाकाम रहती है, तो इसके शेयरधारकों को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति या पैसे से देनदारियों का भुगतान करना होता है।
हालांकि यहाँ शेयरधारकों का दायित्व असीमित होता है, लेकिन कंपनी को इसके शेयरधारकों से अलग एक स्वतंत्र निकाय माना जाता है और इसके शेयरधारकों पर स्वतंत्र रूप से कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के फायदे
किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को शुरू करने के कई फायदे हो सकते हैं, इनमें से कुछ निम्न हैं
- सीमित देयता होने के चलते शेयरधारकों की निजी संपत्ति कंपनी की देनदारियों से मुक्त होती है
- कंपनी शुरू करने के लिए केवल दो शेयरधारकों की आवश्यकता होती है
- शेयरों की ट्रेडिंग सार्वजनिक रूप से नहीं होती है, जिससे कंपनी का नियंत्रण सीमित लोगों के पास रहता है
- कंपनी को एक अलग कानूनी पहचान मिलती है, यह इसके मालिकों से स्वतंत्र होती है
- कंपनी का संचालन करना आसान होता है
- कंपनी शुरू करने के लिए बहुत अधिक न्यूनतम पूंजी की आवश्यकता नहीं होती है
- शेयरधारकों के पास अपने शेयर ट्रांसफर करने का विकल्प होता है
- कंपनी भविष्य में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में बदल सकती है
- प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों को सरकार द्वारा कई टैक्स लाभ भी दिए जाते हैं
- इन्हें पब्लिक कंपनियों की तुलना में कम विनियामक आवश्यकताओं का अनुपालन करना होता है
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के नुकसान
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कुछ नकारात्मक पहलू
- पब्लिक कंपनियों की तुलना में कम सार्वजनिक जानकारी के कारण पारदर्शिता का अभाव
- हालांकि शेयरों को ट्रांसफर किया जा सकता है, किन्तु यह प्रक्रिया जटिल होती है
- शेयरधारकों की सीमित संख्या व्यवसाय के विस्तार को प्रभावित कर सकती है
- प्राइवेट लिमिटेड कंपनियाँ पब्लिक इश्यू के जरिये पूंजी नहीं जुटा सकती हैं
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के पंजीकरण की शर्तें
एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (Private Limited Company) बनाने या उसका पंजीकरण करने के लिए विभिन्न प्रकार के दस्तावेजों की जरूरत होती है, साथ ही कुछ अन्य शर्तों को पूरा करना भी अनिवार्य होता है।
कंपनी को पंजीकृत करने की आवश्यकताएं नीचे बताई गई हैं:
कंपनी के नाम का चयन
किसी भी कंपनी (प्राइवेट लमिटेड कंपनी) का रजिस्ट्रेशन करने के लिए सबसे पहले आपको एक विशिष्ट नाम की आवश्यकता होती है, जिससे आपके बिजनेस को एक यूनिक पहचान मिलती है।
कंपनी का नाम निर्धारित करने से पहले आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि, आपकी कंपनी नाम अद्वितीय हो तथा किसी अन्य व्यक्ति अथवा संस्था के बौद्धिक संपदा अधिकारों का अतिक्रमण न करता हो। आपकी कंपनी का नाम यूनिक है या नहीं इसे आप कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट से जाँच सकते हैं।
यदि आपकी कंपनी का मनचाहा नाम आपको मिल जाता है, तो इस नाम को आप 1000 रुपये का शुल्क देकर आरक्षित भी कर सकते हैं और अगले 20 दिनों के भीतर कभी भी कंपनी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
कंपनी के सदस्य एवं निदेशक
किसी कंपनी को कानूनी तौर पर पंजीकृत करने के लिए कम से कम दो सदस्यों तथा दो निदेशकों (Directors) की जरूरत होती है। गौरतलब है कि, कंपनी के सदस्य ही इसके निदेशक भी बन सकते हैं अतः प्राइवेट लिमिटेड कंपनी पंजीकृत करने के लिए आपको कम से कम दो लोगों की आवश्यकता होती है।
कंपनी के प्रत्येक निदेशक के पास एक निदेशक पहचान संख्या (DIN) होनी चाहिए, जो कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा दी जाती है। निदेशक पहचान संख्या प्राप्त करने के लिए आपको एमसीए की वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन करना होगा और फॉर्म डीआईआर-3 भरकर जमा करना होगा। विशिष्ट पहचान संख्या के साथ ही निदेशकों में से कम से कम एक भारत का निवासी (Resident) भी होना चाहिए।
मेमोरेंडम एवं आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन
मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) और आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन (AOA) किसी कंपनी की शुरुआत करने के दौरान दो महत्वपूर्ण दस्तावेज होते हैं। मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) मुख्यतः कंपनी के उद्देश्यों, उसकी गतिविधियों तथा कानूनी दायरे की जानकारी देता है, जबकि आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन (AOA) कंपनी के आंतरिक संचालन और प्रबंधन से संबंधित नियमों और विनियमों को निर्दिष्ट करता है।
गौरतलब है कि, इन दोनों दस्तावेजों को अलग से बनवाने की जरूरत नहीं होती है, बल्कि ये कंपनी रजिस्ट्रेशन के दौरान प्री ड्राफ्ट फॉर्म के रूप में मिलते हैं, जिनमें अपनी कंपनी के अनुसार जरूरी बदलाव करना होता है।
अन्य जरूरी दस्तावेज
कंपनी रजिस्ट्रेशन के लिए आपको निम्नलिखित दस्तावेजों की आवश्यकता होगी
- सदस्यों की पहचान का प्रमाण
- सदस्यों के पते का प्रमाण
- डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (डीएससी)
- शुरुआती शेयर कैपिटल (न्यूनतम 2 रुपये)
- सदस्यों तथा निदेशकों की MCA पोर्टल पर ID
- प्रस्तावित कंपनी का शेयरधारिता पैटर्न
- पंजीकृत कार्यालय के पते का प्रमाण
- कंपनी का रजिस्टर्ड कार्यालय किराये में है, तो मकान मालिक से अनापत्ति प्रमाण पत्र
कंपनी के पंजीकरण की प्रक्रिया
यदि आपके पास सभी जरूरी दस्तावेज जैसे निदेशक पहचान संख्या, डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र (डीएससी), सदस्यों के पहचान और पते के प्रमाण, पंजीकृत कार्यालय के पते का प्रमाण आदि उपलब्ध हैं, तो आप कॉर्पोरेट मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से अपनी कंपनी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
इसके लिए सबसे पहले आपको MCA पोर्टल पर अपना अकाउंट बनाना होगा और नीचे बताए गए अलग-अलग फॉर्म्स को भरना होगा। इन फॉर्म्स के नाम तथा इनका महत्व नीचे बताया गया है:
- SPICe Part A: कंपनी के नाम के अप्रूवल के लिए, यदि आप पहले से कंपनी का नाम रिजर्व करा चुके हैं तो सीधे अगले स्टेप पर जा सकते हैं
- SPICe Part B: कंपनी की पूरी जानकारी जैसे उसकी संरचना, सदस्यों/निदेशकों की संख्या तथा उनकी जानकारी, शेयर कैपिटल इत्यादि
- INC-35: इसके द्वारा सिर्फ एक फॉर्म से GST, EPFO, ESIC जैसे रजिस्ट्रेशन किये जा सकते हैं।
- INC-33: कंपनी का मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन
- INC-34: कंपनी का आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन
- INC-9: कंपनी के सभी सदस्यों तथा निदेशकों का घोषणापत्र
हालांकि कंपनी रजिस्ट्रेशन की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है, किन्तु इसे पूरा करने के लिए आपको किसी पेशेवर व्यक्ति जैसे चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरी, कोस्ट अकाउंटेंट या एडवोकेट की आवश्यकता होगी, जो आपके सभी दस्तावेजों को डिजिटल रूप से प्रमाणित करेंगे। इसके पश्चात ही आपका आवेदन जमा हो सकेगा।
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अंत में आपको पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना होगा, जो प्रत्येक राज्य के अनुसार अलग हो सकता है। आवेदन जमा हो जाने के बाद कंपनी रजिस्ट्रार आपके आवेदन की जाँच करेगा और यदि आपका आवेदन सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है, तो आपको निगमन का प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा, जिसे MCA की वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता है। यह एक कानूनी दस्तावेज होता है, जो आपकी कंपनी के पंजीकरण की पुष्टि करता है।
सार-संक्षेप
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी एक तरह की प्राइवेट कंपनी होती है, अर्थात इसका स्वामित्व निजी व्यक्ति या संस्था के हाथों में होता है। इन कंपनियों के शेयर स्टॉक एक्सचेंज जैसे बीएसई या एनएसई पर ट्रेड नहीं होते हैं। इनकी पहचान इनके नाम से की जा सकती है, इनके नाम के आखिर में ‘प्राइवेट लिमिटेड’ लगाया जाता है।
भारत में कार्यरत कुछ बड़ी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के उदाहरण देखें तो इनमें गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, ऐमज़ान रिटेल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं।