Monday, December 2, 2024

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम या फेमा क्या है और इसके तहत क्या प्रावधान हैं?

फेमा कानून के अंतर्गत देश के निवासियों तथा गैर-निवासियों के मध्य होने वाले विदेशी मुद्रा के लेन-देन के लिए नियम बनाए गए हैं। कानून के अलग-अलग भाग हैं, जो इस कानून के अधिकार क्षेत्र को परिभाषित करते हैं।

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संक्षेप में

किसी भी अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा बेहद अहम भूमिका अदा करती है, विश्व के अन्य देशों के साथ व्यापार आदि में इसका इस्तेमाल किया जाता है। विदेशी मुद्रा की महत्ता को देखते भारत में विदेशी मुद्रा के प्रबंधन के लिए एक कानून लागू किया गया है जिसे “विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम” या फेमा के नाम से जाना जाता है।

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम को संक्षिप्त रूप में आपने ऊपर समझा, इस लेख में आगे विस्तार से जानेंगे FEMA कानून क्या है, FEMA कानून के तहत क्या प्रावधान हैं, FEMA से पहले इस संबंध में लागू किया गया कानून फ़ॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन ऐक्ट क्या था तथा FEMA और FERA के बीच क्या अंतर हैं?

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) क्या है?

1991 में आए आर्थिक संकट के बाद देश की अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की नीति अपनाई गई फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आसान होने लगा, लेकिन इसके क्रियान्वयन के लिए विदेशी मुद्रा के बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता थी।

हाँलकी इसके लिए कानून पूर्व में बनाया गया था किन्तु वह विदेशी मुद्रा के प्रबंधन से अधिक संरक्षण पर बल देता था। इसी कारण 1999 में विदेशी मुद्रा नियमन हेतु बनाए गए पुराने कानून FERA के स्थान पर नए कानून विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) को लाया गया, जो 1 जून 2000 से प्रभाव में आया।

FEMA के तहत क्या प्रावधान हैं?

फेमा कानून के अंतर्गत देश के निवासियों तथा गैर-निवासियों के मध्य होने वाले विदेशी मुद्रा के लेन-देन के लिए नियम बनाए गए हैं। कानून के अलग-अलग भाग हैं, जो इस कानून के अधिकार क्षेत्र को परिभाषित करते हैं।

FEMA कानून किन लोगों पर लागू होगा?

यह कानून भारत में स्थाई रूप से निवास कर रहे प्रत्येक व्यक्ति (Permanent Residents of India) पर लागू होता है। गौरतलब है की यहाँ स्थायी निवासी (PRI) से आशय केवल किसी व्यक्ति विशेष से नहीं है, बल्कि निम्नलिखित को भी स्थायी निवासियों की श्रेणी में शामिल किया गया है।

  • कोई हिन्दू अविभाजित परिवार
  • भारत में पंजीकृत कोई भी कंपनी, एजेंसी, संस्था, फर्म आदि
  • किसी PRI द्वारा विदेशों में संचालित कोई कंपनी, ऑफिस, संस्था, फर्म, एजेंसी आदि
  • किसी विदेशी कंपनी की भारत में खोली गई कोई शाखा, ऑफिस आदि

फेमा कानून (Foreign Exchange Management Act) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति पर भी लागू होता है, जो ऊपर बताई गई किसी भी श्रेणी से संबंधित हों तथा उन्होंने देश से बाहर कानून के किसी प्रावधान का उल्लंघन किया हो। 

इस कानून के अंतर्गत नियामक की भूमिका में केंद्र सरकार है, जबकि नियमों को लागू करवाने का काम भारतीय रिजर्व बैंक का है। इसके अतिरिक्त इस कानून के तहत प्रशासनिक निकाय के रूप में प्रवर्तन निदेशालय (ED) है।

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) कानून में स्थाई भारतीय निवासियों को परिभाषित किया गया है। किसी व्यक्ति के PRI होने के लिए मुख्यतः दो शर्तें रखी गई हैं तथा दोनों शर्तों का लागू होना आवश्यक है। पहली शर्त देश में निवास की समयावधि है तथा दूसरी शर्त निवास करने का कारण।

यदि कोई व्यक्ति जिसनें पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत में 183 या इससे अधिक दिनों तक निवास किया हो तथा उसके निवास का कारण 1) व्यवसाय 2) रोजगार या कोई भी ऐसा उद्देश्य, जिसके लिए व्यक्ति अनिश्चित काल के लिए भारत में रह रहा है, में से कोई एक हो तो वह व्यक्ति भारत का स्थाई निवासी समझा जाएगा।

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इसके अतिरिक्त कोई भारतीय नागरिक जो उक्त तीन कारणों के चलते किसी अन्य देश में निवास कर रहा है उसे भारत का स्थाई निवासी नहीं माना जाएगा। इस प्रकार विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) कानून का संबंध किसी व्यक्ति की नागरिकता से नहीं है। 

किसी संस्था या कंपनी की स्थिति में, यदि कंपनी का नियंत्रण किसी स्थाई निवासी (PRI) के पास है या उसकी कोई शाखा, ऑफिस इत्यादि भारत में मौजूद हैं तो उसे भी भारत का स्थाई निवासी समझा जाएगा। 

कानून के भाग-3 में विदेशी मुद्रा तथा प्रतिभूतियों (Forex and Foreign Security) के लेन-देन के संबंध में नियम बताए गए हैं। इसके तहत ऐसे किसी व्यक्ति से विदेशी मुद्रा या प्रतिभूतियों का लेन-देन करना जिसे रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत न किया गया हो, किसी गैर-निवासी के पक्ष में किसी भी प्रकार का भुगतान तथा भारत में किया गया कोई भुगतान, जिसके कारण विदेश में किसी संपत्ति या परिसंपत्ति का अर्जन होता हो को प्रतिबंधित किया गया है। 

चालू खाते में किसी देश के निवासियों तथा गैर निवासियों के मध्य होने वाले उत्पाद तथा सेवा के आयात-निर्यात, रेमिटेन्स, डोनेशन, लाभांश, ब्याज आदि का रिकॉर्ड दर्शाया जाता है। फेमा कानून में चालू खाते से संबंधित भुगतानों के लिए नियम बनाए गए हैं, जिन्हें Foreign Exchange Management (Current Account Transactions) Rules, 2000 नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित तीन अनुसूचियाँ शामिल हैं।

अनुसूचि 1 – भुगतान प्रतिबंधित: इसके तहत लौटरी टिकट, प्रतिबंधित मैगजीन तथा फूटबॉल टीम को खरीदना, किसी भारतीय कंपनी द्वारा विदेश में स्थित अपनी किसी शाखा को निर्यात की एवज में कमीशन देना, लौटरी की जीत को बाहर भेजना, रेसिंग आदि से प्राप्त आय को बाहर भेजना आदि प्रतिबंधित है।

गौरतलब है कि निर्यात की एवज में कमीशन का डॉलर में भुगतान करना प्रतिबंधित है, जबकि रुपये में कितनी भी राशि का कमीशन दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त चाय तथा तंबाकू के निर्यात की स्थिति में कुल राशि के 10% तक का कमीशन डॉलर में देने की छूट दी गई है।

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अनुसूचि 2 – भुगतान के लिए केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी आवश्यक: इसके तहत विदेश में किसी सांस्कृतिक यात्रा से संबंधित खर्च के लिए, सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा विदेशी निवेश एवं पर्यटन को बढ़ावा देने से संबंधित विज्ञापनों के अतिरिक्त “विदेशी प्रिन्ट मीडिया” में किसी विज्ञापन के खर्च के लिए यदि वह 10,000 डॉलर से अधिक राशि का हो, किसी इनाम की राशि तथा स्पोर्ट्स से संबंधित किसी स्पॉन्सरशिप के लिए विदेश में एक लाख डॉलर से अधिक के खर्च, विदेश में टेलीविजन एवं इंटरनेट सेवा उपलब्ध करवाने के लिए किराए में लिए गए ट्रांसपॉन्डर के किराए का भुगतान आदि के लिए सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक है। 

अनुसूची 3 – भुगतान के लिए रिजर्व बैंक की पूर्व मंजूरी आवश्यक: इसके तहत कोई व्यक्ति एक वित्त वर्ष के दौरान केवल 2,50,000 अमेरिकी डॉलर की सीमा के भीतर निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए विदेशी मुद्रा का लाभ उठा सकता है। निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए उक्त सीमा से अधिक किसी भी अतिरिक्त भुगतान के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्वानुमोदन की आवश्यकता होगी।

  • भूटान तथा नेपाल के अतिरिक्त किसी देश में निजी यात्रा का खर्च 
  • गिफ्ट एवं डोनेशन 
  • विदेश में रोजगार हेतु जाना 
  • विदेश में प्रवास 
  • विदेश में अपने संबंधियों को खर्च भेजना 
  • व्यापार के लिए यात्रा, चिकित्सा उपचार के लिए किसी रोगी के संबंधी के रूप में यात्रा
  • विदेश में चिकित्सा का खर्च 
  • विदेश में शिक्षा का खर्च 

गौरतलब है की विदेश में प्रवास, चिकित्सा तथा शिक्षा के खर्च हेतु कोई व्यक्ति 2,50,000 डॉलर की सीमा से अधिक भी खर्च कर सकता है यदि प्रवास किये जाने वाले देश, चिकित्सा संस्थान तथा विश्वविद्यालय द्वारा इसकी पुष्टि की जाती है।

पूँजी खाते के तहत ऐसे लेन देन शामिल हैं जिनमें किसी देश के निवासी द्वारा विदेश में किसी परिसंपत्ति का अर्जन या उन्हें बेचा जाता है। कानून में चालू खाते से संबंधित भुगतानों के लिए नियम बनाए गए हैं, जिन्हें Foreign Exchange Management (Permissible Capital Account Transection) Regulation, 2000 नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत 2 अनुसूचियाँ तथा एक प्रतिबंधित सूची शामिल है।

अनुसूचि 1 : यह अनुसूचि किसी स्थाई निवासी को विदेश में पूँजी खाते से संबंधित लेन-देन करने की छूट देती है। इसके अंतर्गत आने वाले कुछ मुख्य लेन-देनों में विदेशी प्रतिभूतियों (शेयर, बॉंडस तथा डिबेंचर्स) में निवेश, भारत तथा विदेशों में लिए गए विदेशी मुद्रा ऋण, भारत के बाहर किसी अचल संपत्ति का हस्तांतरण, भारत और भारत के बाहर विदेशी मुद्रा खातों का रखरखाव, किसी विदेशी बीमा कंपनी से बीमा खरीदना, किसी परिसंपत्ति का भारत के बाहर प्रेषण, भारत के बाहर निवास करने वाले व्यक्ति (PROI) से ऋण प्राप्त करना या ऋण देना आदि शामिल हैं।

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अनुसूचि 2 : यह अनुसूचि किसी PROI या गैर-निवासी को भारत में पूँजी खाते से संबंधित लेन-देन करने की छूट देता है। इसके अंतर्गत भारत में अचल संपत्ति का अधिग्रहण और हस्तांतरण, भारत में विदेशी मुद्रा खाते का रखरखाव, भारतीय प्रतिभूतियों (शेयर, बॉंडस तथा डिबेंचर्स) में निवेश, किसी परिसंपत्ति का भारत के बाहर प्रेषण, किसी PRI से ऋण प्राप्त करना या ऋण देना आदि शामिल हैं।

प्रतिबंधित लेन-देन : इस सूची में पूँजी खाते से संबंधित ऐसे लेन-देन शामिल हैं, जिन्हें PRI तथा PROI के लिए प्रतिबंधित किया गया है। किसी PRI के लिए ऐसा कोई पूँजी खाता लेन-देन, जिसकी आदेश S.O. 1549(E) के अनुसार अनुमति नहीं है, फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स(FATF) द्वारा असहयोगी देशों की सूची में रखे गए किसी भी देश से पूंजीगत लेन-देन, उत्तर कोरिया, उत्तर कोरिया में पंजीकृत किसी कंपनी या संस्था से पूंजीगत लेन-देन प्रतिबंधित हैं। 

वहीं किसी गैर-निवासी (PROI) की बात करें तो ऐसे व्यक्ति के लिए TDRs (Transferable Development Rights), कृषि एवं रोपण, निधि कंपनी, पुनर्विकास से संबंधित रियल स्टेट बिजनेस, सरकार की मंजूरी के बिना चिट फंड में निवेश आदि में लेन-देन करना प्रतिबंधित है।

FEMA कानून का उल्लंघन करने पर कितनी सजा है?

यदि कोई व्यक्ति फेमा के प्रावधानों या फेमा के तहत जारी किसी नियम, निर्देश, आदेश या अधिसूचना का उल्लंघन करता है तो उस पर इस तरह के उल्लंघन में शामिल राशि के तीन गुना या 2 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

यदि इस तरह का उल्लंघन भविष्य में पुनः किया जाता है तो उस स्थिति में वह एक और दंड का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा, जो उल्लंघन जारी रहने के दौरान प्रत्येक दिन के लिए 5,000 रुपये तक हो सकता है।

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) क्या है?

विदेशी मुद्रा के संरक्षण तथा विनियमन के लिए साल 1973 में विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) बनाया गया तथा इस कानून के तहत रिजर्व बैंक को विदेशी मुद्रा का संरक्षक बनाया गया।

FERA कानून के मुख्य कार्यों में विदेशी भुगतान पर नियंत्रण रखना, विदेशी मुद्रा के आयात और निर्यात पर नजर रखना और विदेशियों द्वारा अचल संपत्तियों की खरीद को नियंत्रित करना आदि काम शामिल थे।

फेरा (FERA) कानून विदेशी मुद्रा के प्रबंधन के बजाए इसके संरक्षण पर अधिक बल देता था तथा इसके प्रावधानों के उल्लंघन करने पर कठोर सजा के प्रावधान थे। इस कानून के तहत आरोपी पर आपराधिक मामले के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता था तथा आरोपी को स्वयं ही खुद को निर्दोष साबित करना होता था।

FEMA और FERA में क्या अंतर है?

लेख में ऊपर हमनें FEMA तथा FERA दोनों कानूनों को विस्तार से समझाया है, इन दोनों के मध्य कुछ महत्वपूर्ण अंतरों की बात करें तो ये निम्नलिखित हैं-

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA)विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA)
 FERA कानून साल 1973 में लागू किया गया FEMA कानून को साल 1999 में लागू किया गया
  यह कानून साल 1999 के बाद से लागू नहीं हैFEMA कानून वर्तमान में लागू है
 इस कानून में कुल 81 धाराएं हैं इस कानून में कुल 49 धाराएं हैं
यह कानून भारतीय नागरिकों पर लागू होता थायह कानून स्थाई भारतीय निवासियों पर लागू होता है जो किसी अन्य देश के नागरिक भी हो सकते हैं
इस कानून का मुख्य उद्देश्य विदेशी मुद्रा का संरक्षण थायह कानून विदेशी मुद्रा के प्रबंधन की बात करता है
इस कानून के तहत किये गए उल्लंघन को क्रिमिनल मामलों की श्रेणी में रखा जाता था इस कानून के तहत किये गए उल्लंघन को दीवानी मामलों की श्रेणी में रखा जाता है
 FERA के तहत मुकदमा दर्ज होते ही आरोपी को दोषी माना जाता था और उसे ही खुद यह साबित करना होता था कि वह दोषी नहीं है FEMA कानून के तहत किसी उल्लंघन की स्थिति में आरोपी की दोषसिद्धि का दायित्व आरोपी पर नहीं बल्कि जाँच एजेंसी पर होता है

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