आपने अक्सर समाचारों इत्यादि में किसी देश के घटते, बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार या फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व के बारे में सुना होगा। आइए समझते हैं विदेशी मुद्रा भंडार क्या होता है, किसी देश के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है तथा विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से किसी देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है।
विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?
विदेशी मुद्रा भंडार, जिसे “Foreign Exchange Reserves” या “Forex Reserves” भी कहा जाता है किसी देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा रिजर्व में रखे गए विभिन्न प्रकार के विदेशी मुद्रा एसेट्स होते हैं। इन एसेट्स में विदेशी मुद्राएं जैसे अमेरिकी डॉलर, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन आदि शामिल होती हैं।
विदेशी मुद्राओं के अलावा किसी देश के फॉरेक्स रिजर्व में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा जारी बॉन्ड, ट्रेजरी बिल, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मुद्रा स्पेशल ड्राइंग राइट (SDR) तथा सोना भी शामिल होता है। विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता वैश्विक देनदारियों को चुकाने, मौद्रिक नीति के बेहतर क्रियान्वयन आदि में होती है।
विदेशी मुद्रा भंडार क्यों जरूरी है?
जब भी हमें देश के भीतर किसी प्रकार की खरीदारी करनी हो तो हमें भुगतान (Payment) करने के लिए रुपये की आवश्यकता होती है, किन्तु जब यही खरीदारी हम किसी अन्य देश से करते हैं, तो उसका भुगतान करने के लिए उस देश की मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है।
इसी प्रकार विभिन्न देशों को भी दुनियाँ के अन्य देशों के साथ व्यापार करने तथा अन्य खर्चों के भुगतान के लिए विदेशी मुद्रा की जरूरत होती है, जिसे वे रिजर्व के रूप में रखते हैं। किसी देश को निम्नलिखित कारणों के चलते फॉरेक्स रिजर्व की आवश्यकता होती है-
- वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात के भुगतान के लिए
- विदेशों से लिए गए कर्ज के भुगतान के लिए
- मौद्रिक नीति के क्रियान्वयन के लिए
- भारतीयों द्वारा विदेशों में किये गए खर्च जैसे इलाज, शिक्षा, पर्यटन आदि लिए
वैश्विक देनदारियों के अलावा भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार की मदद से ही USD/INR एक्सचेंज रेट को भी कुछ हद तक नियंत्रित करता है। साल 1991 में आए आर्थिक संकट के बाद से देश में कई आर्थिक सुधार किये गए, जिनमें रुपये और डॉलर के एक्सचेंज रेट को तय करने के लिए Managed Floating Exchange Rate Regime व्यवस्था की शुरुआत भी शामिल थी।
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इस व्यवस्था के तहत रुपये और डॉलर का एक्सचेंज रेट डिमांड एवं सप्लाई के आधार पर तय किया जाता है जबकि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत स्थिर बनी रही इस दिशा में रिजर्व बैंक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विदेशी मुद्रा की मांग के अनुसार बाजार में इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करता है और USD/INR एक्सचेंज रेट को नियंत्रण में रखता है।
फॉरेक्स रिजर्व में विदेशी मुद्रा का चयन कैसे होता है?
दुनियाँ में अलग-अलग देशों की कुल मिलाकर करीब 180 मुद्राएं हैं, किन्तु इनमें से कोई देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार में किस विदेशी मुद्रा को रिजर्व के रूप में रखेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि, वह देश किन-किन देशों के साथ अधिक व्यापार करता है या किन-किन देशों की मुद्राओं की उसे अधिक आवश्यकता पड़ती है।
उदाहरण के लिए यदि कोई देश अपने कुल वैश्विक व्यापार का 80 फीसदी व्यापार केवल भारत से करता हो तो वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार में भारतीय रुपये को रिजर्व के तौर पर शामिल करेगा और भारत से होने वाले आयात या अन्य खर्चों के भुगतान के लिए उसका इस्तेमाल करेगा।
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पिछले कई दशकों से अमेरिकी डॉलर एक वैश्विक मुद्रा रही है, जिसे दुनियाँ के लगभग सभी देश भुगतान के लिए न केवल स्वीकार करते हैं बल्कि प्राथमिकता भी देते हैं।
विश्व भर में अमेरिकी डॉलर की बढ़ती मांग का ही नतीजा है कि, लगभग सभी देशों के फॉरेक्स रिजर्व का बहुत बड़ा हिस्सा डॉलर के रूप में होता है। डॉलर के अलावा कुछ अन्य मुद्राओं, जिनका वैश्विक व्यापार में अधिक इस्तेमाल होता है उनमें यूरो तथा ब्रिटिश पाउंड शामिल हैं।
क्या भारतीय रुपया एक वैश्वविक मुद्रा है?
वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के बढ़ते कद के कारण भारतीय रुपया भी धीरे-धीरे एक वैश्विक मुद्रा बनने की ओर अग्रसर है। वर्तमान में जर्मनी, UK समेत तकरीबन 18 देशों ने भारत के साथ रुपये में व्यापार करने पर सहमति दिखाई है।
भारतीय व्यापारियों को अब इन देशों के साथ ट्रेड करने के लिए डॉलर या किसी अन्य विदेशी मुद्रा की आवश्यकता नहीं होगी बल्कि वे भारतीय रुपये में भी आसानी से व्यापार कर सकेंगे।
समय के साथ जैसे-जैसे भारत का निर्यात बढ़ेगा दूसरे शब्दों में भारत अन्य देशों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होगा तो अधिक से अधिक देशों को भारत से व्यापार करने के लिए भारतीय रुपये की आवश्यकता होगी और रुपया एक मजबूत वैश्विक मुद्रा बन कर उभरेगा।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कितना है?
हालांकि भारतीय रुपये को अब एक वैश्विक पहचान मिलने लगी है, बावजूद इसके भारत को वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है।
विदेशी मुद्रा खासकर अमेरिकी डॉलर में होने वाला देश का सबसे बड़ा खर्च कच्चे तेल का आयात है, चूंकि भारत खनिज तेल (Crude Oil) में आत्मनिर्भर नहीं है और अपनी जरूरत का तकरीबन 80 से 85 फीसदी खनिज तेल आयात करता है लिहाजा भारत को इसका भुगतान करने के लिए अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होती है।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जून 2023 की शुरुआत में जारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $595.067 बिलियन डॉलर के करीब है।
दुनियाँ में सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार चीन के पास है जो तकरीबन 3.3 ट्रिलियन डॉलर का है। इसके बाद 1.25 ट्रिलियन डॉलर के साथ जापान दूसरे, 898 मिलियन डॉलर के साथ स्विजरलैंड तीसरे, 595 मिलियन डॉलर के साथ भारत चौथे तथा 583 मिलियन डॉलर के साथ रूस पांचवें स्थान पर है।
केन्द्रीय बैंक के पास कहाँ से आती है विदेशी मुद्रा?
जैसा कि, हमनें ऊपर जाना फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व किसी देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा रिजर्व में रखे गए विदेशी मुद्रा एसेट्स होते हैं, ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है आखिर किसी देश के केन्द्रीय बैंक जो कि, भारत की स्थिति में रिजर्व बैंक (RBI) है के पास ये विदेशी मुद्रा एसेट्स आते कहाँ से हैं?
देश में विदेशी मुद्रा का प्रवाह किस प्रकार होता है इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं। मान लें कि, भारत की कोई कंपनी घड़ियाँ बनाकर विभिन्न देशों में इनका निर्यात (Export) करती है और भुगतान केवल अमेरिकी डॉलर में ही स्वीकार करती है।
चूंकि कंपनी को भारत में अपने संचालन (कर्मचारियों के वेतन, कच्चे माल का भुगतान आदि) के लिए भारतीय रुपये की आवश्यकता है अतः कंपनी द्वारा अर्जित विदेशी मुद्रा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास चली जाती है, बदले में रिजर्व बैंक कंपनी को इतनी ही कीमत की घरेलू मुद्रा यानी रुपया दे देता है।
वहीं आयात (Import) की स्थिति में इसका उल्टा होता है, उदाहरण के लिए यदि कोई भारतीय व्यापारी अमेरिका की किसी कंपनी से कोई उत्पाद आयात करता है तो उसे इसका भुगतान डॉलर में करना होगा और इस स्थिति में भारतीय व्यापारी रिजर्व बैंक से भारतीय रुपये के बदले अमेरिकी डॉलर प्राप्त करेगा।
इस प्रकार किसी भी देश का निर्यात उस देश में विदेशी मुद्रा लेकर आता है, जबकि देश में होने वाला आयात विदेशी मुद्रा को कम करता है। आयात-निर्यात के अलावा पर्यटन, मेडिकल टूरिज़्म, शिक्षा, रेमिटेन्स, विदेशी निवेश से प्राप्त रिटर्न, गिफ्ट, डोनेशन समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनके द्वारा भारत में विदेशी मुद्रा आती है अथवा भारत से बाहर जाती है।