Friday, January 17, 2025

भारत में गिफ्ट पर लगने वाला टैक्स, टैक्स की दरें और इससे जुड़े जरूरी प्रावधान

काले धन के इस्तेमाल तथा टैक्स चोरी को रोकने के लिए सरकार द्वारा गिफ्ट्स पर टैक्स की व्यवस्था करी गई है, इसके साथ ही यह सरकार के राजस्व को भी बढ़ाता है। आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(x) में गिफ्ट पर लगने वाले टैक्स तथा इससे जुड़े प्रावधानों को बताया गया है।

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प्रत्येक सरकारें अपने नागरिकों से उनकी आय का एक हिस्सा डायरेक्ट टैक्स के रूप में वसूलती हैं। ये आय अलग-अलग तरीकों से हो सकती है, जैसे वेतन के रूप में, व्यवसाय के रूप में, निवेश से मिलने वाले रिटर्न के रूप में आदि। आय के इन्हीं स्रोतों में एक स्रोत किसी व्यक्ति को मिलने वाले उपहार या गिफ्ट भी हैं।

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हालाँकि कोई भी उपहार उसकी कीमत के विपरीत भावनात्मक रूप से अधिक महत्व का होता है, इसलिए यह प्रश्न उठना भी लाज़मी है कि आखिर सरकारें उपहारों पर टैक्स क्यों लगाती हैं? उपहारों को किसी व्यक्ति की आय समझकर उस पर टैक्स लगाने के पीछे सरकारों का उद्देश्य किसी व्यक्ति की भावनाओं को आहत करना नहीं है, बल्कि ऐसा करने का मुख्य कारण टैक्स चोरी और काले धन पर लगाम लगाना है।

आइए इस लेख में समझते हैं सरकार द्वारा गिफ्ट पर कब टैक्स लगाया जाता है, गिफ्ट पर लगाया जाने वाला टैक्स कितना होता है और किन परिस्थितियों में या किन व्यक्तियों से मिले गिफ्ट टैक्स के दायरे से बाहर होते हैं।

भारत में गिफ्ट पर लगने वाले टैक्स

कुछ परिस्थितियों को छोड़कर गिफ्ट्स पर टैक्स की व्यवस्था सर्वप्रथम 1958 में उपहार कर अधिनियम, 1958 के द्वारा शुरू की गई। इन उपहारों में कैश, डिमांड ड्राफ्ट, चेक, चल एवं अचल संपत्ति आदि शामिल थे। 1998 में इस कानून को समाप्त कर दिया गया तथा सभी प्रकार के उपहार टैक्स के दायरे से बाहर हो गए।

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साल 2004 में वित्त अधिनियम, 2004 के माध्यम से उपहारों पर लगाए जाने वाले करों को नए रूप में प्रस्तुत किया गया तथा अलग कानून बनाने के बजाए इसे आयकर अधिनियम के अधीन कर दिया गया। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 56(2)(x) में उपहारों पर लगने वाले करों तथा इसके संबंध में अन्य प्रावधान किये गए हैं।

किन परिस्थितियों में लागू होती है धारा 56(2)(x)?

आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(x) के पहले खंड 56(2)(x)(a) में कुछ शर्तों का उल्लेख किया गया है। किसी गिफ्ट पर टैक्स लगाने के लिए इन सभी शर्तों का लागू होना आवश्यक है। यदि इनमें से कोई भी शर्त लागू न होती हो तब उस स्थिति में किसी गिफ्ट पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता है। आइए इन शर्तों को विस्तार से जानते हैं

#1 उपहारों (Gifts) का प्रकार

कोई व्यक्ति जिसे गिफ्ट प्राप्त होता है, उसके लिए वह उपहार पूँजीगत परिसंपत्ति (Capital Asset) होनी चाहिए। पूँजीगत परिसंपत्ति की परिभाषा आयकर अधिनियम की धारा 2(14) में दी गई है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित एसेट क्लास शामिल हैं

  • किसी भी प्रकार की चल संपत्ति
  • अचल संपत्ति जैसे भूमि, भवन
  • प्रतिभूतियाँ जैसे शेयर, बॉन्ड, डिबेंचर्स
  • सोना, चाँदी, आभूषण आदि

कुछ संपत्तियों को कैपिटल एसेट्स की श्रेणी से बाहर रखा गया है, इमनें निम्नलिखित शामिल हैं

  • जैसे कृषि भूमि (शहरी को छोड़कर)
  • ऐसी सभी संपत्तियाँ, जिन्हें व्यापार (Stock-in-Trade) के उद्देश्य से खरीदा गया है
  • निजी इस्तेमाल की जाने वाली कोई भी चल संपत्ति जैसे कार, घड़ी इत्यादि

चाँदी, सोना, प्लेटिनम या किसी अन्य कीमती धातु से बने आभूषण, कीमती पत्थर , पुरातात्विक संग्रह, चित्र, पेंटिंग, मूर्तियां अथवा कला के किसी भी रूप को पूंजीगत परिसंपत्ति (Capital Asset) माना जाएगा, भले ही इसका उपयोग व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिए किया गया हो

#2 कर (Tax) के अधीन आने वाले उपहार

इसके तहत ऐसे गिफ्ट्स का उल्‍लेख किया गया है, जिन पर टैक्स लगाया जा सकता है। इनके अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार के गिफ्ट्स टैक्स के दायरे से बाहर होंगे। इन गिफ्ट्स में किसी भी माध्यम (नकद, चैक, डिमांड ड्राफ्ट) से प्राप्त मुद्रा, अचल संपत्ति (भूमि/भवन), चल संपत्ति (पेंटिंग, पुरातात्विक संग्रह, मूर्तियाँ, कला का कोई अन्य रूप, चित्र, आभूषण, बुलियन, शेयर, बॉन्ड, डिबेंचर्स आदि) शामिल हैं।

#3 उपहार प्राप्त करने के माध्यम

इसमें उपहार लेने के माध्यमों के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार यदि कोई भी उपहार यहाँ उल्लिखित माध्यमों से प्राप्त हुआ हो तो वह टैक्स के दायरे से बाहर होगा। इनमें अपनी शादी पर प्राप्त उपहार, वसीयत अथवा विरासत में मिली संपत्तियाँ इत्यादि शामिल हैं।

इसके अलावा आयकर अधिनियम की धारा 47 के अंतर्गत किये गए कुछ चुनिंदा लेन-देन गिफ्ट टैक्स के दायरे से बाहर होंगे। इनमें निम्न ट्रांजेक्शन शामिल हैं

  • जैसे हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) के पूर्ण या आंशिक विभाजन पर किसी संपत्ति का बंटवारा
  • पैरेंट कंपनी द्वारा अपनी सहायक कंपनी को हस्तांतरित की गई संपत्ति
  • सहायक कंपनी द्वारा पैरेंट कंपनी को हस्तांतरित की गई संपत्ति
  • कुछ स्थितियों को छोड़कर किसी कंपनी के विभाजन अथवा समायोजन की स्थति में होने वाले हस्तांतरण

गौरतलब है कि, पैरेंट कंपनी द्वारा अपनी सहायक कंपनी को हस्तांतरित की गई कोई भी संपत्ति या इसकी विपरीत स्थिति में टैक्स से छूट तभी मिलेगी जब, संपत्ति प्राप्त करने वाली कंपनी भारतीय हो।

#4 उपहार देने वाले व्यक्ति

इसके तहत गिफ्ट देने वाले व्यक्तियों के संबंध में प्रावधान हैं। यदि कोई गिफ्ट देने वाला व्यक्ति निम्न में से कोई है, तो गिफ्ट पाने वाले व्यक्ति पर टैक्स नहीं लगाया जाएगा।

इन व्यक्तियों में नजदीकी संबंधी, स्थानीय प्राधिकरण (पंचायत, नगरपालिका आदि), कोई फाउंडेशन, विश्वविद्यालय, अस्पताल, आयकर की धारा 10(23C), 12A, 12AA में वर्णित ट्रस्ट इत्यादि शामिल हैं।

इस कानून में नजदीकी संबंधियों को परिभाषित किया गया है। किसी हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) की स्थिति में HUF के सभी सदस्य संबंधियों की श्रेणी में आएंगे, जबकि किसी व्यक्ति (Individual) के लिए निम्नलिखित को ही संबंधी समझा जाएगा

  • जीवनसाथी (Spouse) एवं व्यक्ति के माता-पिता
  • ऊपर वर्णित व्यक्तियों के भाई-बहन (जीवनसाथी के भाई-बहन एवं माता-पिता के भाई बहन)
  • व्यक्ति अथवा जीवनसाथी के Lineal Ascendant तथा Lineal Descendant
  • ऊपर वर्णित सभी व्यक्तियों के जीवनसाथी

#5 उपहार प्राप्त करने वाला

कोई व्यक्ति या निकाय, जो इस शर्त में वर्णित है उसे प्राप्त कोई भी गिफ्ट टैक्स से मुक्त होगा। इनमें धारा 10(23C)(iv)(v)(vi)(via) के तहत आने वाले निकाय जैसे शैक्षणिक संस्थान, ट्रस्ट, अस्पताल आदि शामिल हैं।

यदि किसी व्यक्ति के “ऊपर वर्णित किसी संबंधी” द्वारा कोई ट्रस्ट केवल इस उद्देश्य से बनाया जाता है, कि वह उस व्यक्ति को कोई संपत्ति हस्तांतरित कर सके, दूसरे शब्दों में संबंधी स्वयं उपहार न देकर इस उद्देश्य से किसी ट्रस्ट का निर्माण करता है, तो इस स्थिति में भी ट्रस्ट द्वारा व्यक्ति को दिया गया उपहार कर मुक्त होगा।

#6 उपहार की कीमत

इस शर्त के अनुसार किसी व्यक्ति को प्राप्त हुए उपहार के मूल्य की एक सीमा निर्धारित की गई है। यदि प्राप्त हुआ कोई उपहार अधोलिखित सीमा से अधिक मूल्यवान हो तभी उस पर टैक्स लगाया जा सकता है।

उपहारों पर लगाया जाने वाला टैक्स आयकर की विभिन्न टैक्स दरों के अनुसार “अन्य स्रोतों से प्राप्त आय” के रूप में देय होता है। अलग-अलग उपहारों की स्थिति में निर्धारित सीमा निम्नलिखित है-

✅ किसी भी माध्यम से प्राप्त मुद्रा 50,000 रुपयों से अधिक नहीं होनी चाहिए। अधिक होने की स्थिति में सम्पूर्ण राशि पर टैक्स लगाया जाएगा।

✅ उपहार के रूप में प्राप्त सभी प्रकार की चल संपत्तियों का कुल मूल्य 50,000 रुपयों से अधिक नहीं होनी चाहिए, अधिक होने की स्थिति में संपत्ति की कुल कीमत पर टैक्स लगाया जाएगा।

✅ एक वित्त वर्ष के दौरान प्राप्त सभी प्रकार की चल संपत्तियाँ जिसे प्राप्त करने की एवज में कुछ राशि का भुगतान किया गया हो, तब ऐसी स्थिति में दोनों के मध्य अंतर (Fair Market Value – Amount Paid) 50,000 रुपयों से अधिक नहीं होना चाहिए, अधिक होने की स्थिति में कुल अंतर पर टैक्स लगाया जाएगा।

✅ उपहार के रूप में प्राप्त किसी भी प्रकार की अचल संपत्ति का कुल मूल्य (Stamp Duty Value) 50,000 रुपयों से अधिक नहीं होना चाहिए, अधिक होने की स्थिति में SDV के अनुसार संपत्ति की कुल कीमत पर टैक्स लगाया जाएगा।

गौरतलब है कि, चल संपत्ति के विपरीत अचल संपत्ति की स्थिति में 50,000 की सीमा प्रत्येक अचल संपत्ति के लिए अलग-अलग दी जाती है।

✅ एक वित्त वर्ष के दौरान प्राप्त किसी प्रकार की अचल संपत्ति, जिसे प्राप्त करने की एवज में कुछ राशि का भुगतान किया गया हो, तो ऐसी स्थिति में दोनों के मध्य अंतर 50,000 रुपयों अथवा भुगतान की गई धनराशि के 5%, जो भी अधिक हो उससे अधिक नहीं होनी चाहिए। अधिक होने की स्थिति में कुल अंतर पर टैक्स लगाया जाएगा।

क्यों लगाया जाता है गिफ्ट्स पर टैक्स?

जैसा कि, हमनें ऊपर बताया उपहारों पर कर (Tax on Gifts in India) लगाने के पीछे सरकारों का मुख्य उद्देश्य कर की चोरी को रोकना तथा काले धन के इस्तेमाल को खत्म करना है। एक उदाहरण की सहायता से समझने का प्रयास करते हैं उपहारों की आड़ में टैक्स चोरी तथा काले धन का इस्तेमाल कैसे किया जाता है।

राजवीर अपनी जमीन, जिसकी सरकारी कीमत (SDV) एक करोड़ रुपये है उसे बेचने का फैसला लेता है। उसका मित्र सुदर्शन यह जमीन खरीदना चाहता है, लेकिन उसके बैंक खाते में केवल 50 लाख रुपये हैं।

हालांकि उसके पास अन्य 50 लाख रुपये, काले धन के रूप में हैं, जो गैर-कानूनी तरीके से कमाये गए हैं। यहाँ दोनों एक समझौता करते हैं, जिसके अनुसार यह तय होता है कि राजवीर आधिकारिक तौर पर अपनी जमीन सुदर्शन को 50 लाख में बेचेगा, जबकि सुदर्शन शेष बचे 50 लाख का भुगतान कैश में करेगा जो कि, काला धन है।

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इस पूरी व्यवस्था से दोनों लाभान्वित होते हैं। राजवीर के फायदे को देखें तो उसे जमीन की बिक्री पर, जो कैपिटल गेन टैक्स सामान्य स्थिति में एक करोड़ की राशि पर चुकाना पड़ता अब केवल 50 लाख पर ही देना होगा, जबकि सुदर्शन को यह लाभ हुआ कि, उसे उसका काला धन इस्तेमाल करने का अवसर मिल गया।

इसी प्रकार कई अन्य तरीकों से मुद्रा तथा संपत्ति का हस्तांतरण उपहारों के नाम पर किया जाता था, जिसे विनियमित करने के लिए उपहारों पर टैक्स लगाने की व्यवस्था करी गई है।

सार-संक्षेप

काले धन के इस्तेमाल तथा टैक्स चोरी को रोकने के लिए सरकार द्वारा गिफ्ट्स पर टैक्स की व्यवस्था करी गई है, इसके साथ ही यह सरकार के राजस्व को भी बढ़ाता है। आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(x) में गिफ्ट पर लगने वाले टैक्स तथा इससे जुड़े विभिन्न प्रावधानों को बताया गया है।

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