किसी भी देश की पूँजी आवश्यकताओं को केवल उसके भीतरी संसाधनों के जरिए पूरा करना संभव नहीं है, इसलिए देश में आर्थिक गतिविधियों को सुचारु रखने के लिए निवेश या इनवेस्टमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये निवेश घरेलू अथवा विदेशी किसी भी तरीके का हो सकता है।
शेयर बाजार (Stock Market) में घरेलू एवं विदेशी निवेश के संबंध में कुछ शब्दावलियाँ अक्सर इस्तेमाल करी जाती हैं, इनमें विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI), विदेशी इंस्टीट्यूशनल निवेशक (FII) तथा घरेलू इंस्टीट्यूशनल निवेशक (DII) शामिल हैं। अलग-अलग प्रकार के ये निवेशक अपने निवेश के द्वारा अर्थव्यवस्थाओं खासकर जो विकासशील अवस्था में हैं उन्हें एक नया आकार प्रदान करने का काम करते हैं।
इन निवेशकों की रणनीतियाँ बाजार की दिशा और आर्थिक संतुलन को निरंतर प्रभावित करती हैं। इस लेख में आगे विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे तीन प्रकार के ये निवेशक FII, DII एवं FPI कौन होते हैं, एक दूसरे से कैसे अलग हैं तथा भारतीय वित्तीय बाजारों को किस तरह से प्रभावित करते हैं।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश या FPI क्या है?
शेयर बाजार में FPI, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment) या निवेशकों के लिए इस्तेमाल करी जाने वाली शब्दावली है। FPI का इस्तेमाल एक देश के वित्तीय एसेट्स में दूसरे देश के व्यक्तिगत एवं संस्थागत निवेशकों द्वारा किए गए निवेश का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश आम तौर पर स्टॉक, बॉन्ड या किसी अन्य प्रकार के वित्तीय साधनों में किए जाते हैं। निवेशकों के लिहाज से यह उनका एक व्यापक समूह होता है, जिसमें व्यक्तिगत निवेशक, संस्थागत निवेशक जैसे म्यूचुअल फंड्स तथा अन्य निवेश वाहिकाएं शामिल होती हैं।
विदेशी संस्थागत निवेश या FII क्या है?
शेयर बाजार में FII, विदेशी संस्थागत निवेश या निवेशकों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि, विदेशी संस्थागत निवेश (FII), विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) का ही एक घटक है।
FII का इस्तेमाल एक देश के वित्तीय एसेट्स में दूसरे देश के संस्थागत निवेशकों जैसे म्यूचुअल फंड्स, बीमा कंपनियाँ, पेंशन फंड्स, बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा किए गए निवेश का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) के विपरीत विदेशी संस्थागत निवेश (FII) में व्यक्तिगत निवेशक शामिल नहीं होते हैं और ये (FIIs) अपना निवेश सामान्यतः लंबी अवधि के लिए ही करते हैं।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की विशेषताएं
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक जिसमें FPIs एवं FIIs दोनों शामिल हैं किसी एक देश से संबंधित होते हैं, जबकि किसी अन्य देश के वित्तीय बाजारों में अपना निवेश करते हैं
- ये विदेशी निवेशक सामान्यतः बाजार में बड़ी मात्रा में पूँजी का निवेश करते हैं
- FPIs के अंतर्गत संस्थागत, व्यक्तिगत, छोटे-बड़े सभी प्रकार के निवेशक शामिल होते हैं
- कोई भी विदेशी निवेशक चाहे वह FPI हो अथवा FII अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के उद्देश्य से अलग-अलग देशों की परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं
अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश की भूमिका
पूँजी की आपूर्ति: चूँकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) बड़े पैमाने पर पूँजी का निवेश करते हैं, लिहाजा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश से वित्तीय बाजारों में तरलता (Liquidity) बढ़ती है और पूँजी की उपलब्धता में सुधार होता है, जो किसी भी देश की विकास यात्रा के लिए एक जरूरी तत्व है।
बाजार में तरलता: विदेशी निवेश सामान्यतः इक्विटी (स्टॉक्स), बॉन्ड्स तथा अन्य वित्तीय उत्पादों में किया जाता है। ये निवेशक बड़ी मात्रा में स्टॉक्स, बॉन्ड आदि खरीदते-बेचते हैं जिसके चलते बाजार में लेन-देन की गतिविधियां बढ़ती हैं और यह तरलता बाजार को अधिक स्थिर एवं कुशल बनाती है।
आर्थिक विकास को गति: विदेशी निवेश किसी देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है, इससे देश में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है जैसे देश में उद्योग बढ़ते हैं, नयी टेक्नोलॉजी एवं नवाचार की संभावनाएं बढ़ती हैं, इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण होता है और रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार: किसी देश को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश से एक सबसे अहम फायदा उसके विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserve) में वृद्धि होना है। जब विदेशी निवेशक किसी दूसरे देश में निवेश करते हैं, तो वे अपनी घरेलू मुद्रा को विदेशी मुद्रा में बदलते हैं, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा होता है। यह भंडार देश की आर्थिक स्थिरता और संकट के समय में सहायता करता है।
FPI एवं FII में क्या अंतर है?
हालांकि FPI एवं FII दोनों एक ही तरह के निवेश हैं। विदेशी संस्थागत निवेश (FII), विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) का ही एक हिस्सा है, जिसके अंतर्गत केवल बड़े संस्थागत निवेशकों को शामिल किया जाता है। इन दोनों के मध्य कुछ मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) | विदेशी संस्थागत निवेश (FII) |
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इसके अंतर्गत सभी प्रकार के विदेशी निवेश शामिल हैं जो देश की सिक्योरिटीज जैसे बॉन्ड, स्टॉक्स, डिबेंचर्स इत्यादि में निवेश करते हैं | इसके तहत केवल विदेशी संस्थाएं जैसे म्यूचुअल फंड्स, बैंक इत्यादि आते हैं जो देश की सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं। |
चूँकि यहाँ छोटे-बड़े, संस्थागत, व्यक्तिगत हर तरीके के निवेशक होते हैं अतः यह निवेश अधिक अस्थिर (Volatile) होता है | बड़े संस्थागत निवेशक होने के चलते यह निवेश FPI की तुलना में कम वोलेटाइल होता है |
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश या FPI अल्पकालिक अवधि का होता है | विदेशी इंस्टीट्यूशनल निवेश साधारणतः लंबी अवधि के लिए किया जाता है |
डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टमेंट या DII क्या है?
घरेलू संस्थागत निवेशक (DII) वे संस्थाएं होती हैं, जो अपने देश के भीतर वित्तीय बाजारों में बड़ी मात्रा में निवेश करती हैं। DIIs विभिन्न प्रकार की संस्थाएं हो सकती हैं जैसे कि म्यूचुअल फंड्स, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड्स इत्यादि।
ये संस्थाएं स्थानीय पूँजी को विभिन्न फाइनेंशियल इन्स्ट्रूमेंट्स में निवेश करके घरेलू बाजारों में तरलता और स्थिरता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
कोई संस्थागत निवेशक DII एवं FII दोनों की भूमिका में काम कर सकता है, उदाहरण के लिए यदि कोई अमेरिकी बैंक अपने देश के भीतर ही स्टॉक्स, बॉन्ड आदि में निवेश करे तो उसे Domestic Institutional Investor (DII) की श्रेणी में रखा जाएगा, जबकि यदि वही बैंक भारतीय शेयर बाजार में निवेश करता है तो भारत के लिए वह Foreign Institutional Investor (FII) की श्रेणी में शामिल होगा।
सारांश (Summary)
वित्तीय बाजारों में निवेश करने वाले निवेशकों को अलग-अलग श्रेणियों जैसे विदेशी संस्थागत निवेशक (FII), घरेलू संस्थागत निवेशक (DII), और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में विभाजित किया जाता है ताकि विभिन्न प्रकार के निवेशकों की रणनीति, बाजार एवं देश पर उनके प्रभाव आदि का विश्लेषण किया जा सके।
इसके अलावा निवेशकों को अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित करने से नियामक संस्थाओं के लिए नियमों और नीतियों का निर्माण करना तथा निवेश गतिविधियों पर निगरानी रखना आसान हो जाता है।