डिफॉल्टर किसे कहा जाता है तथा डिफॉल्टर होने के क्या नुकसान हैं?

आर्टिकल शेयर करें

बैंकिंग से जुड़ी खबरों में आपने अक्सर किसी व्यक्ति या कंपनी के डिफॉल्टर (Defaulter) होने के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं डिफॉल्टर किसे कहा जाता है अथवा डिफ़ॉल्ट होने का क्या मतलब होता है?

आइए इस लेख में समझने का प्रयास करते हैं डिफॉल्टर होना क्या होता है, कब किसी व्यक्ति को डिफॉल्टर घोषित किया जाता है तथा डिफॉल्टर घोषित किये गए किसी व्यक्ति पर क्या कानूनी कार्यवाही करी जा सकती हैं।

डिफ़ॉल्ट क्या है?

डिफ़ॉल्ट (Default) का शाब्दिक अर्थ “किसी कानूनी दायित्व का पालन न करना” होता है और सामान्यतः इसका इस्तेमाल वित्तीय दायित्वों के संदर्भ में किया जाता है। डिफॉल्ट तब होता है जब कोई उधारकर्ता (Borrower) लिए गए ऋण का भुगतान (मूलधन तथा ब्याज दोनों रूपों में) करना बंद कर देता है।

डिफॉल्टर कौन होता है?

ऐसा व्यक्ति जो समय पर अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में विफल रहता है अर्थात लिए गए ऋण (Loan) पर ब्याज या मूलधन का भुगतान करना बंद कर देता है, उसे डिफॉल्टर (Defaulter) कहा जाता है। गौरतलब है कि किसी व्यक्ति के अलावा कोई कंपनी, संस्था और यहाँ तक कि कोई देश भी डिफॉल्टर घोषित किया जा सकता है।

डिफॉल्टर होने की स्थिति में उधारकर्ता पर कानूनी दावे किए जा सकते हैं साथ ही भविष्य में उसे किसी अन्य वित्तीय संस्थान से कर्ज मिलने की संभावना भी नहीं के बराबर हो जाती है।

कोई व्यक्ति डिफॉल्टर कब घोषित किया जाता है?

समय सीमा के भीतर किसी लोन का भुगतान न करने पर सीधे किसी व्यक्ति को डिफॉल्टर घोषित नहीं किया जाता बल्कि जब वह लगातार कई भुगतान करने में विफल रहता है तो ऐसा होता है। किसी व्यक्ति के डिफॉल्टर होने की शर्तें लोन के प्रकार तथा बैंक के साथ किये गए कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर अलग-अलग हो सकती हैं।

उदाहरण के लिए पर्सनल लोन की स्थिति में सामान्यतः यदि कोई व्यक्ति लगातार 3 महीनों या 90 दिनों तक ऋण का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है। वहीं क्रेडिट कार्ड के बिल या न्यूनतम देय राशि (Minimum Due) का भुगतान न करने की स्थिति में यह समय सीमा 180 दिनों की होती है।

डिफॉल्टर घोषित होने की शुरुआत कैसे होती है?

जब आप अपने लोन की किसी किश्त का भुगतान समय पर नहीं कर पाते हैं तो बैंक सामान्यतः 30 दिनों का अतिरिक्त समय या ग्रेस पीरियड देते हैं। इस दौरान वे क्रेडिट ब्यूरो को आपके पेमेंट मिस होने की जानकारी नहीं देते, हालांकि इस स्थिति में आपको लेट फीस के तौर पर 5 से 10% तक का अतिरिक्त शुल्क अवश्य देना पड़ता है।

यदि आप एक बिलिंग साइकिल या 30 दिनों के भीतर अपनी EMI भरने में विफल रहते हैं तो इसके बाद बैंक इसकी जानकारी क्रेडिट ब्यूरो जैसे सिबिल, इक्विफैक्स आदि को दे देता है और आपका क्रेडिट स्कोर खराब होने लगता है। किसी छूटे हुए पेमेंट की जानकारी आपकी क्रेडिट रिपोर्ट पर सात वर्षों तक बनी रह सकती है।

यदि आप 90 दिनों तक अपने लोन की एवज में कोई भुगतान नहीं करते हैं तो आपको डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है, जिसका सीधा मतलब है कि आप समझौते में लिखी गई शर्तों के अनुसार ऋण चुकाने में विफल रहे हैं। इस प्रकार के लोन को बैंक गैर निष्पादित परिसंपत्ति या NPA की श्रेणी में डाल देता है।

डिफॉल्टर घोषित होने के बाद क्या होता है?

किसी व्यक्ति को डिफॉल्टर घोषित कर दिए जाने के बाद उसे कानूनी तथा वित्तीय कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, बैंक या वित्तीय संस्थान लोन के प्रकार के आधार पर उचित कदम उठाते हैं।

उदाहरण के लिए यदि दिया गया लोन सुरक्षित लोन (Secured Loan) है अर्थात उसके बदले किसी संपत्ति को गिरवी रखा गया है, तो बैंक उस संपत्ति की जब्ती कर सकता है। इस प्रकार के लोन में होम लोन, वाहन लोन, किसी अन्य मूल्यवान संपत्ति जैसे FD, गोल्ड, स्टॉक्स, म्यूचुअल फंड्स आदि पर लिया गया लोन शामिल है।

Also Read : रेमिटेंस (Remittance) क्या होता है और किसी देश के लिए कितना जरूरी है?

वहीं यदि लोन असुरक्षित प्रकार (Unsecured Loan) का है जैसे पर्सनल लोन, एजुकेशन लोन या क्रेडिट कार्ड तो बैंक कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकता है तथा अपना पैसा वसूलने के लिए डेट कलेक्शन एजेंसियों की सेवा ले सकता है, जो उधारकर्ता से आक्रामक तरीके से पैसे की वसूली करती हैं।

लोन डिफ़ॉल्ट करने के क्या नुकसान हैं?

जैसा कि हमनें ऊपर बताया किसी लोन के डिफ़ॉल्ट हो जाने पर उधारकर्ता को आर्थिक एवं कानूनी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। आइए इनमें से कुछ को एक-एक कर विस्तार से समझते हैं

लोन डिफ़ॉल्ट करने का सबसे पहला नुकसान यह है कि, इससे आपका क्रेडिट स्कोर बुरी तरह खराब होता है। किसी व्यक्ति का क्रेडिट स्कोर कई कारकों पर निर्भर करता है और इन सब में पेमेंट हिस्ट्री सबसे प्रभावशाली कारक है, इसलिए लोन का समय पर भुगतान न करने का आपके क्रेडिट स्कोर पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

क्रेडिट स्कोर आपकी साख (Creditworthiness) तथा वित्तीय प्रबंधन को दिखाता है और जब यह खराब हो तो आपको कई तरीके से नुकसान उठाना पड़ सकता है। खराब क्रेडिट स्कोर होने के कारण लोन और क्रेडिट कार्ड मिलने की संभावना बहुत कम हो जाती है और यदि लोन मिल भी जाए तो इसकी ब्याज दरें अधिक होती हैं।

इसके अलावा कई मकान मालिक, नियोक्ता (Employer), बीमा कंपनियाँ आदि आपके क्रेडिट स्कोर को ध्यान में रखते हुए अपनी सेवाएं देते हैं लिहाजा खराब क्रेडिट स्कोर होने के चलते आपको इन क्षेत्रों में भी दिक्कतें आ सकती हैं।

किसी सुरक्षित लोन की स्थिति में जब आप लगातार कई महीनों तक लोन की किश्तों का भुगतान नहीं करते हैं और डिफॉल्टर घोषित हो जाते हैं, तो बैंक आपके खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकता है। इस प्रक्रिया में, वे न्यायालय से आपकी संपत्ति को जब्त करने का आदेश प्राप्त कर सकता है।

Also Read

क्रेडिट कार्ड में मिनिमम ड्यू या न्यूनतम देय राशि का क्या मतलब होता है?

चेक बाउंस होने का क्या मतलब होता है और क्या हैं चेक बाउंस से जुड़े नियम?

How to Check Your CIBIL Score: अपना सिबिल स्कोर कैसे चेक करें?

जानें पेमेंट गेटवे क्या होता है और कैसे पूरा होता है कोई ऑनलाइन पेमेंट?

बता दें कि, कुछ मामलों में बैंक को जब्ती के लिए न्यायालय का आदेश प्राप्त करने की भी जरूरत नहीं होती है। इसके बाद बैंक आपकी संपत्ति को सार्वजनिक नीलामी के जरिए बेचकर अपने पैसों की वसूली करता है। यदि बैंक नीलामी के द्वारा पूरे पैसे वसूल न कर पाए तो बची हुई राशि का भुगतान आपको करना पड़ सकता है।

लोन डिफ़ॉल्ट होने की स्थिति में आपके खिलाफ बैंक द्वारा कानूनी कार्यवाही शुरू करी जा सकती है। इसके परिणामस्वरूप न्यायालय आपके खिलाफ निम्नलिखित आदेश जारी कर सकता है

  • आपकी गिरवी अथवा गैर-गिरवी रखी गई संपत्तियों की जब्ती के आदेश
  • बैंक खाते में मौजूद धनराशि को फ्रीज़ करने का आदेश
  • नियोक्ता को आपके वेतन से कटौती कर लोन का भुगतान करने का आदेश
  • यदि आपकी स्थिति बेहद गंभीर है तो न्यायालय आपको दिवालिया घोषित कर सकता है

समय पर अपने लोन का भुगतान न करने के चलते आपको आर्थिक रूप से भी नुकसान उठना पड़ता है। इनमें लेट फीस, पेनाल्टी, भारी ब्याज दरें, कानूनी लागत जैसे कई अन्य खर्च आपके अनसेटल्ड लोन बैलेंस में जुड़ जाते हैं।

लोन डिफ़ॉल्ट होने से जहाँ आपको कानूनी और वित्तीय तौर पर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, वहीं यह स्थिति किसी व्यक्ति के लिए मानसिक रूप से भी बहुत पीड़ादायक हो सकती है।

लगातार कानूनी नोटिस प्राप्त होना, लोन रिकवरी एजेंट्स द्वारा बार-बार फोन करना आदि आपको मानसिक रूप से परेशान कर सकता है, साथ ही सामाजिक तौर पर भी इससे आपकी छवि पर बुरा असर पड़ता है।

लोन डिफ़ॉल्ट होने पर क्या करें?

वैश्विक मंदी, महामारी जैसे बाहरी कारणों के अलावा, कई व्यक्तिगत कारण भी हो सकते हैं जो किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को बिगाड़ सकते हैं, जिससे वह अपने लोन का भुगतान करने में असमर्थ हो सकता है।

इस प्रकार व्यक्ति की स्थिति के आधार पर लोन डिफ़ॉल्ट और उसके परिणामों से बचने के लिए अलग-अलग उपाय हो सकते हैं। हालांकि यहाँ बताए गए कुछ सामान्य उपायों को कोई भी व्यक्ति अपना सकता है।

यदि आप किसी कारणवश अपने लोन का भुगतान समय पर नहीं कर पा रहे हैं तो डिफ़ॉल्ट होने से बचने के लिए आपको तत्काल अपने ऋणदाता से बात करनी चाहिए। किसी लोन का डिफ़ॉल्ट होना ऋणदाता के भी समय और पैसे का नुकसान करता है लिहाजा वे हमेशा किसी समाधान के लिए तैयार रहते हैं।

बातचीत के जरिए बैंक आपको कुछ समय तक लोन की किश्तों का भुगतान स्थगित करने की अनुमति दे सकता है, आपकी किश्त को कम कर सकता है, ब्याज दर में कटौती कर सकता है, यदि आपके पास एक से अधिक लोन हैं तो बैंक उन्हें एक साथ मिला सकता है, वित्तीय परामर्श प्रदान कर सकता है या सेटलमेंट का विकल्प दे सकता है।

खराब वित्तीय प्रबंधन किसी भी व्यक्ति को आर्थिक संकट में डाल सकता है अतः लोन डिफ़ॉल्ट से बचने के लिए अपने वित्तीय प्रबंधन को सुधारना बहुत जरूरी है। इसके तहत आय के स्रोतों में वृद्धि करना, अपनी मासिक आय और खर्चों का स्पष्ट रूप से विश्लेषण करना, गैर-जरूरी खर्चों की पहचान कर उन्हें कम करना आदि शामिल हैं।

कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेग्युलेट होते हैं और बैंकों द्वारा डिफॉल्टर्स से रिकवरी करने की प्रक्रिया का निर्धारण भी रिजर्व बैंक ही करता है। अपना लोन वसूलने के लिए कर्जदाता रिकवरी एजेंट्स की सेवाएं भले ही ले सकते हैं लेकिन ये एजेंट्स ग्राहकों को धमका या उनसे बदसलूकी नहीं कर सकते। इसके साथ ही रिकवरी एजेंट्स ग्राहक को सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच ही संपर्क कर सकते हैं

सार-संक्षेप

डिफ़ॉल्ट तब होता है जब कोई उधारकर्ता लिए गए ऋण की एवज में मूलधन अथवा ब्याज किसी का भी भुगतान समय पर करने में विफल हो जाता है। डिफ़ॉल्ट करने वाले व्यक्ति को डिफॉल्टर के रूप में परिभाषित किया जाता है और इसके चलते उसे कई कानूनी और वित्तीय परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।